पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉ• विनय
कुमार श्रीवास्तव” का एक लघुलेख जिसका शीर्षक है “मेरे
अपने सपने कुछ सच हुए कुछ सच होंगे”:
"सपने वो नहीं सच होते, जो रात में सोते में देखे जाते हैं।
सपने वही सच होते हैं, जो हमें सोने ही नहीं देते हैं।"
सपने देखना कोई खराब बात नहीं है। यह तो बड़ी अच्छी बात है, पर हमें
सपने खुली आँखों से देखना चाहिए। उन सपनों को सच करने में हमें बहूत कठिन परिश्रम, लगन, साहस और
धैर्य के साथ हमारा आत्मविश्वास भी होना चाहिये। इसे पूरा करने की दिशा में आपके
अंदर एक पक्की धुन और जुनून होना भी जरूरी है।
अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों के प्रति मेरा ये सपना था कि मैं अपने बेटियों
और बेटे को अपने जीवन काल मे समय से उन्हें पढ़ा लिखा कर बेटियों के हाथ पीले कर
उनकी घर गृहस्थी बसा सकूँ और बेटे की जिम्मेदारियों को निभाते हुए उसके भी विवाह
को सम्पन्न करा कर सभी बच्चों को उनकी मंजिल तक पहुँचा सकूँ। अपने लिए एक छोटा सा
आशियाना भी जीवन मे बना सकूँ और खुशी से रह सकूँ।
ईश्वर की कृपा से मेरा ये सपना पूरा हुआ और मैं अपने बच्चों की परिवरिश, शिक्षा-दीक्षा, शादी
विवाह करते हुए रहने के लिए एक कुटिया भी बना लिया और आज अपने सभी जिम्मेदारियों
से निवृत्त हो सका।
"प्रभु आप की कृपा से सब काम हो रहा है, करते हो
तुम कन्हैया मेरा नाम हो रहा है।"
अब मेरा केवल एक ही सपना है कि अपने जीते जी समाज के लिए भी जो हो सके, वह भी
तो जरूर करुँ। मैंने नेत्रदान और अंगदान करने का निर्णय ले लिया है और करने के लिए
संबंधित संस्था को लिख दिया है, परिवार के सदस्यों को इस बात से अवगत भी
करा दिया है ताकि मेरी मृत्यु की सूचना समय से उस संस्था को दे सकें,जिससे
मृत्योपरांत मेरी आँखे किन्हीं दो व्यक्तियों की अँधेरी जिंदगी में रौशनी प्रदान
कर उन्हें उजाला दे सकें।
इसी तरह मेरी मृत शरीर के दान से मेरे शरीर के उन उपयोगी अंगों को दूसरे पीड़ित
और प्रतीक्षित व्यक्ति को प्रत्यारोपित कर उनको जीवन दान मिल सके, और
चिकित्सा शिक्षा की पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं को एक मृत शरीर जो जला दी जाती
अथवा दफन कर दी जाती, उन्हें प्रैक्टिकल करने को मिल सके और
अध्ययन में सहायक हो सके। मैं अपनी यह सारी संकल्पित इच्छायें पूर्ण करने की अपने
परिवार से जीते जी इच्छा रखते हुए मृत्योपरांत पूर्णता की शांति चाहता हूँ।
इस नश्वर शरीर को मरने के बाद किसी काम की नहीं रह जाती उसके लिए मेरा सबसे
छोटा किन्तु महत्वपूर्ण और उद्देश्यपूर्ण एक यही एक सपना है कि कुछ व्यक्तियों के
जीवन और होंठों पर यदि मैं अपने नेत्रदान और अंगदान से उनके जीवन मे कुछ पल की भी
खुशी ला सकने में सहायक सिद्ध हो सकता तो मैं इस मानव जीवन मे खुद को धन्य तो
समझूँगा ही, अपने जीवन को भी पूर्णतया सफल समझूँगा। इसी बहाने दुनिया मे
कुछ लोग इस नाचीज को याद रखेंगे।
मेरी अपनी यह अभिलाषा तो है ही समाज के अन्य लोगों से भी मेरी अपील भी है कि
वह स्वयं तो अपने जीते जी अपने नेत्र दान,अंग दान
का संकल्प लें ही और अपने परिवार के भी ब्रेन डेड लोगों का भी अंगदान कर समाज के
पीड़ित मानवता को अपना अमूल्य, अतुलनीय और अविस्मरणीय सहयोग कर मानव
मात्र की योनि में जन्म लेने का अपना मानवता का धर्म निभाएं और जाते जाते समाज को
कुछ देकर जाएं।