पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “जयश्री बिरमी” की एक कविता जिसका शीर्षक है “जिस चाह में चाह नहीं, उस चाह की चाह नहीं”:
कितनी चाह हैं हमे चाय की
जिसे पिलो अकेले या साथी के संग
या पिलो दोस्तो के झुंड के साथ
पीते सब चुस्कीयों से स्वाद के साथ
संग हो चना या फिर चबाने के साथ
हो रस्क या फिर रसीले बिस्किट के साथ
सुबह की हो या दुपहर की या हो बेसमय ही
ये तो सभी पेयो से बढ़ कर है कुदेवी सी
सौ में से एक दो ही होंगे जैसे न हो चाह,
यह तो सब की चाह है भाई
आओ मिलकर के
पिए और पिलाएं चाय