पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉ• अलका अरोडा” की एक कविता जिसका
शीर्षक है “मेरा सम्मान - मातृभाषा हिन्दी”:
कब तक हिंदी मंद
रहेगी
अग्रेजी से तंग रहेगी
कब तक पूजोगे अतिथि को
कब तक माँ यूँ त्रस्त रहेगी
माना अग्रेजी की
जरूरत सबको
माना बिन इसके नहीं सुगम डगर हो
माना मान सम्मान भी दिलवाती
पर मातृ भाषा बिन कैसी जिन्दगी
हिन्दी भाषा माँ
की भाषा
पहला पाठ पढ़ाती हमको
आँचलिक भाषाओ का रंग भी
अपने में मिलाती देखो
मात पिता की सेवा
अर्चन
अपने तो संस्कार यही हैं
हिन्दी मेरी जुबा ही नही
मेरे दिल की शहजादी है
प्रथम शब्द निकला
माँ बनकर
प्रथम पाठ भी पढा तुम्ही से
फिर अपनी मातृभाषा को
कैसे बाहर करू इस दिल से
ये मतवाली
मातृभाषा
हिन्दी मेरी सबसे ऊँची
कोई किसी भी जुबा में बोले
माँ की भाषा सबसे मीठी होती
अन्य भाषाओं से
बैर नहीं कोई
दिल में बसाकर रखते हैं हम
मात भाषा का दर्जा जग मे
ईश्वर से भी प्रथम रखते हैं हम
पैसा रुतबा रौब
सभी कुछ
अग्रेजी से मिल जायेगा
वो शहद कहाँ से पाओगे
जो माँ के आँचल में घुलता
मेरी हिदी प्यारी
हिन्दी
गदगद भाव से भर देती है
ज्यौ बहती नदिया शांत चाल से
दरिया को वश में कर लेती
क्या माला के
मोती भी
कभी जुदा हो र्बिंध सकते है
हिन्दी भी तो सर्व मुखी है
बिन बोले क्या जी सकते है
कहीं राग कहीं
द्वेष के संग है
कही प्रांत कही क्षेत्र के ढंग है
सम्मान की जननी मातृभाषा में
इन्द्रधनुष के सातो रंग है
अग्रेजी से तंग रहेगी
कब तक पूजोगे अतिथि को
कब तक माँ यूँ त्रस्त रहेगी
माना बिन इसके नहीं सुगम डगर हो
माना मान सम्मान भी दिलवाती
पर मातृ भाषा बिन कैसी जिन्दगी
पहला पाठ पढ़ाती हमको
आँचलिक भाषाओ का रंग भी
अपने में मिलाती देखो
अपने तो संस्कार यही हैं
हिन्दी मेरी जुबा ही नही
मेरे दिल की शहजादी है
प्रथम पाठ भी पढा तुम्ही से
फिर अपनी मातृभाषा को
कैसे बाहर करू इस दिल से
हिन्दी मेरी सबसे ऊँची
कोई किसी भी जुबा में बोले
माँ की भाषा सबसे मीठी होती
दिल में बसाकर रखते हैं हम
मात भाषा का दर्जा जग मे
ईश्वर से भी प्रथम रखते हैं हम
अग्रेजी से मिल जायेगा
वो शहद कहाँ से पाओगे
जो माँ के आँचल में घुलता
गदगद भाव से भर देती है
ज्यौ बहती नदिया शांत चाल से
दरिया को वश में कर लेती
कभी जुदा हो र्बिंध सकते है
हिन्दी भी तो सर्व मुखी है
बिन बोले क्या जी सकते है
कही प्रांत कही क्षेत्र के ढंग है
सम्मान की जननी मातृभाषा में
इन्द्रधनुष के सातो रंग है