पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “संजय वर्मा "दृष्टि"” की एक कविता जिसका शीर्षक है “बेटी बिना”:
स्कूल की जब होती छुट्टी
तब ऐसा लगता मानों
बगीचे में उड़ रही हो
रंग-बिरंगी तितलिया।
पुकारती अपने पापा को
पापा ...
इतनी सारी नन्ही
रंग-बिरंगी तितलियों में
ढुंढने लग जाती पिता की आंखे।
मुझकों वे गोद में
तब ऐसा महसूस होता
मानो दुनिया जीत ली हो
इस तरह रोज
जीत लेते मेरे पापा दुनिया।
पूरी करते पापा
मै इतनी जिद्दी भी नहीं हूँ
किन्तु जब मै रोती हूँ तो
पापा की आंखे रोती है।
यदि मै नहीं होती तो
मेरे पापा क्या जी पाते मेरे बिना
सोचती हूँ
बेटियाँ नहीं होती तो
उनके पापा कैसे जीते होंगे ?