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कहानी: प्रेम की राह.....? (डॉ. वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर", बालाघाट, मध्यप्रदेश)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉ. वीरेन्द्र सिंह गहरवार की एक कविता  जिसका शीर्षक है “प्रेम की राह.....?”:

         माह जुलाई सावन मास की रिमझिम फुहारों के बीच एक चमकता  हुआ आकर्षक चेहरा काँलेज की कक्षा में सुमधुर सुरीली अभिवादन  उद्बोधन के साथ प्रवेश किया, पल भर में सभी को मनमोहित कर दिया। कक्षा का प्रथम दिन था, परिचयों की श्रृंखला में उसने अपना नाम "शिखा" बताया। सभी एक-दूसरे के प्रति मन मस्तिष्क में क्रियान्वित करने में सार्वजनिक रुप से एकाग्रचित्त होकर पढ़ाई-लिखाई की आवश्यकता प्रतीत होती हैं, उसमें तत्परता के साथ लग गये।
 
        समय बीतता गया, काँलेज के छात्र संघ चुनाव, पिकनिक, स्नेह सम्मेलनों, परीक्षाओं में परस्पर संवाद होने लगे थे, लेकिन उन छात्रों में से एक शिखा के प्रति मन ही मन में सुरेन्द्र आकर्षित हो चला था। काँलेज में तीन वर्ष कैसे बीते पता ही नहीं चला, जैसे-तैसे शिक्षा पूरी हुई। बिदाई समारोह भी हो गया। सुरेन्द्र, शिखा को भुला नहीं पाया था।  शिखा भी सुरेन्द्र के प्रति आकर्षित तो थी परंतु मर्यादित होने के कारण,  वह भी बोल नहीं पाती थी। सब अपने-अपने घर संसार में चले गये।
 
         सुरेन्द्र ने कुछ दिनों उपरान्त  हिम्मत कर अपनी भाभी को वस्तुस्थिति से अवगत कराया। क्योंकि आमतौर पर भाभी के यहां ही दोनों की मुलाकात होती रहती थी। भाभी सुरेन्द्र के बोलने के पहले ही समझ गई थी, क्या बोलने जा रहा हैं,  शिखा के बारे में? क्योंकि दोनों जाति बिरादरी के थे, विवाह के लिए कोई परेशानियां नहीं थी। भाभी ने भैया को,  भैया ने सुरेन्द्र के पिता को बताया,   इस तरह विवाह सिलसिला की चर्चाऐं शुरू हो गयी, देखते-देखते सुरेन्द्र के पिता, शिखा के पिता से मिले, कुण्डली मिलान की बात आई और एक संयोग ही था, योग 36 के मिल गये और जन्म तिथि में भी अंकों का रहस्य की चर्चा थी।  चर्चाओं में दोनों के पिता संतुष्ट थे। परन्तु विधाता को यह रास नहीं आया, उन्हीं के एक रिश्तेदार ने अपने बेटे की बात छेड़ दी, अपने बेटे के गुणों का बखान और सुरेन्द्र के अवगुणों के बारे में भलीभाँति परिचित कराया, सुरेन्द्र हमेशा बीमारियों से ग्रसित रहता हैं, अल्प वेतन भोगी आदि-आदि? फिर क्या था,  शंकाओं के बीच शिखा का विवाह अन्यत्र हो गया। सुरेन्द्र इस सदमें को सहन नहीं कर पाया और कई दिनों तक अनियंत्रित हो गया, जैसे-तैसे इस हादसे से बाहर निकल कर, अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होने का ध्यान केन्द्रित किया।  
 
         सुरेन्द्र ने शादी नहीं करने का निर्णय लिया था, माता-पिता, भाई-भाभी के कहने पर शादी कर लिया। सुरेन्द्र ने शादी उपरान्त भी अपनी उच्च शिक्षा पूर्ण कर, उच्च पद पर पदस्थ होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो गया। घर-परिवार में अपनत्व को कायम रखा। लेकिन शिखा को फिर भी भूल नहीं पाया था।
 
         समय परिवर्तन शील हैं, किसे मालूम था, कि शिखा के पति का अल्प बीमारियों से निधन हो जायेगा, शिखा अपने दुर्भाग्य के आंसुओं का आचमन पीकर, अपने बच्चों के साथ जीवित अवस्था में रहकर जीवन-यापन करने लगी। अचानक फेसबुक में शिखा को सुरेन्द्र की छवियां दिखी और फिर क्या था, पुनः  दोनों की दोस्तियों का सिलसिला मोबाईल, वीडियो कालीन, फेसबुक में चलता रहता था, कौशिश तो बहुत किये मिलनें, लेकिन आपस में कभी नहीं मिल पायें, क्योंकि दोनों प्रेम की राह में पारिवारिक,संस्कारित माहौल के अटूट बंधनों में जकड़े रहते हुए  जीवन यापन करने मजबूर थे......
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