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कविता: हे गुरुवर (बी आकाश राव, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “बी आकाश राव की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हे गुरुवर”:

 
किसी ने दीपक कहा
किसी ने गोविंद से बड़ा किया।
अपने पैरों पर हमें
गुरु के ज्ञान ने ही खड़ा किया।
 
गुरु जो माता है पिता भी है
गुरु जो बंधु है सखा भी है।
गुरु आशीर्वाद है ज्ञान भी है
गुरु विद्या का वरदान भी है।
 
गुरु से ही विद्या पाकर
नित नये आविष्कार हुए।
ज्ञान-विज्ञान के कई नये
दुर्गम सपने साकार हुए।
 
जो गुरु न होता जीवन में
हमको सत्कर्म सिखाता कौन?
अपने अनुभव की रोशनी से
हमको राह दिखाता कौन?
 
हे गुरुवर तुमने ही हममें
शिक्षा का संचार किया।
विविध ज्ञान की प्राप्ति के लिए
कभी दंड दिया कभी प्यार किया।
 
ताम्रपत्र से श्यामपट्ट तक
जीवन का सार दिया तुमने।
संघर्ष कर सके जीवन में हम
वह विस्तृत आधार दिया तुमने।
 
परिश्रम कभी निष्फल नहीं होता
तुमने ही यह सिद्धांत दिया।
अपने समस्त विद्यार्थियों की
जिज्ञासा को शांत किया।
 
मेरी ज्ञानार्जन की परिधि को
तुमने ही विस्तार दिया।
जीवन में जब भी मैं भटका
तुमने ही सुधार किया।
 
मेरे लक्ष्यप्राप्ति की पतंग के
तुम मजबूत धागे थे।
विद्यार्थियों पर जब आयी विपदा
तुम ही सबसे आगे थे।
 
हे गुरुवर मेरे जीवन के
तुम श्रद्धा के पात्र रहे।
हम सबके शिक्षक बनकर भी
आजीवन एक छात्र रहे।
 

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