Welcome to the Official Web Portal of Lakshyavedh Group of Firms

कविता: लहू के रंग (उदय किशोर साह, बाँका, बिहार)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “उदय किशोर साह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “लहू के रंग”:
 
लहू से ना पूछो इसकी जात
हर कतरा में है दीखता एक ही बात
सूरत जिसकी है लाल ही लाल
कण कण में है एक ही चाल
ना कोई काला ना कोई पीला
सतरंगी का दर पे लगा है ताला
फिर क्यूँ जाति होती है इस जग में
रब ने बनाया मानव तन  में
सब मानव का है एक ही रंग
फिर क्यूँ हमारा सोंच हुआ बदरंग
ना कोई ऊँचा ना कोई नीच
राम ने बनाया इन्सानों का मीत
ना कोई पंडित ना कोई भंगी
हमने बनाया समाज को गन्दी
सब मानव ईश्वर की संतान
उपर वाला की नजर में सब है समान
हमने उकेरा भारत व ईरान
टुकड़े में बँट गये खुदा भी हैरान
सब धरती है हमारी माता
हम सब का है एक ही विधाता
माँ की गोद है सारी धरती
फिर क्यूं बँटे है भीठ व परती
जाति धर्म है समाज का काँटा
मानव को मानव ने है बाँटा
आओ इस पर करें हम मंथन
हटा दो इस जाति की बंधन