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कविता: अंधविश्वास (सुनीता कुमारी, पूर्णियाँ, बिहार)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “सुनीता कुमारी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “अंधविश्वास”:

 
बरगद, पीपल पत्थर पूजते ,
क्या हम अंधविश्वासी  हैं ?
या फिर ?
अपने ही विकृत सोच का,
बन बैठे हम दासी हैं ?
 
नदी पूजते स्नान करते ,
पाप धोते भूतकाल  का ?
हर स्नान करने वाला क्या ?
पापी है इस धरती का ?
 
कभी तो बोलो ,जवाब दो,
हँसने वाले हर एक को ।
जो इसे अंधविश्वास समझते ,
आँखें खोलो हर का।
 
बरगद ,पीपल ,तुलसी पूज कर ,
सम्मान करते इस प्रकृति का ।
जिसके कारण जीवन मिला,
पोषण मिलता इस काया को ।
 
पत्थर पूजकर सम्मान करते।
इस पर्यावरण इस मिट्टी का।
कण कण का आभार व्यक्त करते,
जिसके पर  यह जीवन  चलता।
 
नदी नदी स्नान करके महत्व बताते नदी का।
जिसका निर्मल जल पीकर ,
प्यास बुझाते,
इस तन और अन्तर्मन का,
 
यह धरती यह पत्थर प्रकृति
जिसके  हम कर्जदार है ,
जिनके सम्मान में हम
नतमस्तक आभारी  है।
 
सम्मान पाना  हक है,
इस पीपल  इस बरगद का,
पत्थर  पहाड़ नदी और  प्रकृति ,
जिसने हमे  यह जीवन दिया है ।