पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दीडिजिटल फॉर्मेटकीपत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है।आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार “सुनीता कुमारी”की
एककविताजिसका
शीर्षक है “शोर”: अरे ; यह शोर कैसा ? क्या यह मंदिर के
, घंटे की मधुर
ध्वनी है ? या मस्जिद में, पाक अजान पढ़ी जा
रही है? या विवाह समारोह
में, स्त्रियां का
मधुर गायन कर रही है? अरे ; यह चोर कैसा ? क्या बच्चे गली
में कबड्डी खेल रहे हैं? या खेल खेल में, आपस में लड़ाई कर
रहे हैं ? या बच्चे गली में
, क्रिकेट खेल रहे
हैं । या आपस में
जोर-जोर से बातें कर रहे हैं? अरे; यह शोरकैसा, क्या कोई
फेरीवाला गठरी लिए, गली में आवाज दे
रहा है ? या सब्जीवाला , सब्जी बेच रहा है? या स्त्रियों को
मोहित करने वाला साड़ी बेच रहा है
? अरे ; यह शोर कैसा? इस सामाजिक शोर
में तो, कोई त्रुटि नहीं , फिर ये कानों में
चुभनेवाला शोर कैसा ?? ओह; अरे; यह तो कृत्रिम
ध्वनि यंत्रों का शोर है। बड़े-बड़े गाजे-बाजे
वाद्य यंत्रों का शोर है। सड़कों पर दौड़ती
कतारबद्ध गाड़ियो का शोर
है । अंधभक्ति के
दिखावे का शोर है । सामरिक शक्ति को, समारोह में, समाज को दिखाने
का शोर है ? समारोह किसी एक
के घर में? शोर का भोज हर एक
के घर में ? क्या मनुष्य शोर
का भूखा है? या दिखावे में
आकर , दिखावे का भूखा
है ? शोर के शोर में , यह यह याद नही
रहता? किसी के घर
बुजुर्गों बीमार है । किसी के घर नवजात
शिशु की, देखभाल है । किसी के बच्चों
का इंतिहान है । किसी के घर
स्त्रियां काम करके आराम करने के लिए
परेशान हैं । कोई तो बंद करो
इस कृत्रिम शोर को, को कोई तो जागो, इस कृत्रिम
अंधभक्त से। कोई तो आवाज उठाओ इस दिखावे के शोर
से।
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