पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “प्रिया गौड़” की एक कविता जिसका शीर्षक है “अछूत का बैंड बाजों के साथ मंदिर में प्रवेश”:
अरे! सुनो न
हम अछूत हैं
हमारी देह को पाप का घर कहा जाता है
हमारे छूने भर से वो मैले हो जाते हैं
हमें नहीं अधिकार उनके बर्तनों को देखने का भी
ना उनके कुएं और उनके मंदिरों पर रखने का पैर
उनकी बस्ती से नही गुजर सकतें पहन कर पाँव में चप्पल
और ना ही कर सकतें हैं आँखो में आँख डालकर कोई बात
उन्ही मंदिरों में तो अछूतों की लड़कियां बनती हैं देवदासियां
करती हैं उनके भगवान की निष्ठा से सेवा
मंदिर ही हो जाते हैं उनके अपने संसार
और उनकी सेवा से खुश हो भगवान
कर देते हैं उन्हें गर्भवती
वो नही मानते कोई छूत अछूत
वो तो सेवा भाव देख देते हैं
अछूत की कन्या को
गर्भवती होने का आशीर्वाद
यहां मिट जाते हैं छूत अछूत के
सारे नियम कायदे
बदल जाते हैं नीच और पापी
होने के मायने
जो है मात्र सत्ता , श्रेष्ठता और भोग
करने का खेल
जिसको प्यादा बना उन्हें सिर्फ खटाना
और भोगा जाना ही सुनिश्चित किया जा
चुका है शताब्दियों से अब तक..........!