पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “रविकान्त सनाढ्य” की एक कविता जिसका शीर्षक है “मैं प्रिय तेरा पंथ निहारूँ !”:
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ
पलक-पाँवड़े
बिछा रखे हैं
साजन, राह बुहारूँ !
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !
पिया तुम,
बोझ सम्हारूँ !
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !
मैं आरती उतारूँ !
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !
अतुलित मेरी
कैसे उसे उबारूँ ?
पंथ निहारूँ !
पावस-रैना
कैसे हाय गुज़ारूँ ?
पंथ निहारूँ !
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !
आया सावन
सज-धज
रूप निखारूँ !
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !
नेह लगाया
कैसे तुम्हें बिसारूँ,
पंथ निहारूँ !
आती है
तुमको रोज़ चिंतारूँ,
पंथ निहारूँ !!