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कविता: मैं प्रिय तेरा पंथ निहारूँ ! (रविकान्त सनाढ्य, भीलवाड़ा, राजस्थान)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “रविकान्त सनाढ्य की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मैं प्रिय तेरा पंथ निहारूँ !”:

 
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ
पलक-पाँवड़े
बिछा रखे हैं
साजन, राह बुहारूँ !
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !
 
जब से गए विदेस
पिया तुम,
विरह  का
बोझ सम्हारूँ !
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !
 
कब आओगे,
थाल सजा है
मैं आरती उतारूँ !
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !
 
पीर बढ़ गई
अतुलित मेरी
कैसे उसे उबारूँ ?
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !
 
मैं विरहिन हूँ
पावस-रैना
कैसे हाय गुज़ारूँ ?
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !
 
कोयल,मोर,
पपीहा बोलें,
तुमको आज पुकारूँ ।
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !
 
आ जाओ अब
आया सावन
सज-धज
रूप निखारूँ !
मैं प्रिय  तेरा 
पंथ निहारूँ !
 
मैंने तुमसे
नेह लगाया
कैसे तुम्हें बिसारूँ,
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ ! 
 
हिचकी-पर हिचकी
आती है
तुमको रोज़ चिंतारूँ, 
 
मैं प्रिय तेरा
पंथ निहारूँ !!