पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार “ऋचा प्रकाश” की एक कविता जिसका शीर्षक है “उर्मिला की विरह
वेदना ”:
हे मेरे प्रियवर
!
एक आस लगी
तेरे दर्शन को
नैना तरसी,
कितना मनोरम
दृश्य वह
जब तेरी प्रेयसी
बन
असंख्य सपनों का
पिटारा लिए
आँखों में सजाई, तुम्हारे साथ चली
कहाँ पता पल भर
की रोनक
आजीवन की रुस्वाई
हुई,
अब तो हर
श्रृंगार रूठ सी गयी,
हे प्रियतम !
तुम रूह की तरह
बसे मेरे अन्दर
तुमसे जुड़ा
सांसों का डोर
और हृदय का
स्पंदन,
तेरे होने से
मेरा अर्थ
तुझ बिन मैं
व्यर्थ,
तुम ही मेरे पावन
ऋतु सी उमंग
तुम ही पतझड़ सी
मुरझाई उदासीन छाया,
मेरी कविता में
प्रेम का सागर तुम
और शब्दों का
क्रंदन भी तुम,
तुमसे ही भोर का
अभिनन्दन
तुम ही रात्रि के
स्वप्न,
हे प्राणप्यारे !
तुम्हारे
प्रतीक्षा में अब तो
एक टक देखत
आँखें भी पथराई,
बस एक ही आस लगी
कब तुमसे मिले
नैन
कब होई जीवन
साकार,
मैं तो तुझ संग
चलने को साधित खड़ी
किंतु तुम्हारे
वचन ने
बाँध रखे पैरों
को ज़ंजीरों से
काश यह वचन न दिए
होते
तो आज मैं भी
वनवासी होती,
तुम्हारी राह में
अश्रु न बहाती
हे प्राणधार !
एक पल भी ऐसा न
जब मैं तुम्हारी
राह न तकि
अब यह जीवन को और
बोझिल न होने दो
अब साक्षात्कार
हो जाओ,
अपने अन्दर प्रेम
और विश्वास
की दीप जलाई हूँ,
अब और इम्तिहान
मत लो
अब लौट आओ
अब लौट आओ|