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कविता: जीवन की परिभाषा (ऋचा प्रकाश, आसनसोल, पश्चिम बंगाल)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “ऋचा प्रकाश की एक कविता  जिसका शीर्षक है “जीवन की परिभाषा ”:

 
अधिक नहीं, बस इतना कहना चाहती हूँ,  
 
पल-पल बदलती, रंगमंच पर जीवन की परिभाषा
 
 
कुछ यूँ शुरू हुई, जीवन सफर की गाथा
 
नवजात शिशु में जन्मे, पहल हुई जीवन की
 
 
किलोल करती, बीता बचपन की सुनहरी धूप
 
गुड्डे- गुड़ियों अजीज़ हमारा, मानो जीवन में सबसे प्यारा,
 
 
लड़कपन के वह सुनहरे दिन, धीरे-धीरे छूटने लगे
 
बस रह गयी स्मृतियाँ, ढेरों उल्लास देकर हृदय में
 
 
वक़्त का पहिया ऐसे बदला, जाने कब यौवन आया
 
सब कुछ बदला, बदला अपना सोच
 
 
जीवन कश्मकश में फंसी, सही गलत के प्रपंच में उलझी
 
कभी गलत राह आसान लगी, कभी सही राह मुश्किल
 
 
दुनिया की भीड़ में फंसे, हम आगे यह बतलाया
 
भूल गए इंसानियत, हक़ अपना है जताया
 
 
अधिक नहीं, बस इतना कहना चाहती हूँ
 
पल-पल बदलती, रंगमंच पर जीवन की परिभाषा
 
 
चलते चलते राह में, यूँही प्रेम ने बजाए बीन 
 
सब भूल बैठा, बस चल दिए उसकी धुन में
 
 
फिर ली ज़िन्दगी ने करवट, कुछ नए रिश्तों से
 
विवाह के बंधन में बँधे, शुरू हुई जीवन की नई दौर
 
 
आया फिर जिम्मेंदारियों का समय, नए रूप लेकर
 
बच्चों के जीवन को ले, चिंताओं ने घेरा
 
 
जीवन में आया ऐसा समय, जिसे देख तू घबराया
 
आईने में देख खुद को, आईने से शरमाया
 
 
यही हकीकत है, यही दुनिया की रीत
 
न कोई मिटा सका, न मिटा पाए गए
 
 
जो भी पल जीवन के, अनमोल समझ कर जी लो
 
यही जीवन का सार है, यही जीवन की परिभाषा
 
 
अधिक नहीं, बस इतना कहना चाहती हूँ,
 
पल-पल बदलती, रंगमंच पर जीवन की परिभाषा