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कविता: उठो और लड़ो (डॉ• राजेश सिंह राठौर, कल्याणपुर, कानपुर, उत्तर प्रदेश)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉराजेश सिंह राठौर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “उठो और लड़ो”:

वो लड़ सकता है,
तीर कमान,बरछी भाले
से लेकर बंदूकें, तोपें
और टैंक लेकर,
जंग के मैदान में
जूझते हुए मर सकता है।
हाँ, जरा
तारीख के सफे
पलटकर देखिये तो -
वो लड़ा है हमेशा
और जीता है
बड़े बड़े महायुद्धों को
उसने अपने लहू से
सींचा है।
उसकी  क्षमताओं पर
रंचमात्र भी शक
मत करना,
उसके जिंदा होने पर
कभी भी सवाल मत करना।
क्योंकि वह जिंदा था
और जिंदा है
उसके भीतर संवेदनाओं का
संसार बसता है
वह खामोश हर जुल्म
हँस कर सहता है
क्योंकि
वो सब कुछ जानता है।
लेकिन वो दुश्मन की
साजिशों और चालबाजियों को
नही समझ पाता,
और तुम करते हो
जिंदा होने का ढ़ोंग,
जिंदा हो तो उठो
दुशमन को ललकारते हुये
आगे बढ़ो
ये जिम्मेदारी तुम्हारी है
क्योंकि तुम पढ़े लिखे हो
तुम बुद्धिजीवी हो
सत्ता की साजिशों को
बखूबी समझ सकते हो
तुम उठो,
क्रांति की मशाल लेकर
आगे बढो ..
ये तुम्हारे कंधों पर
बड़ी जिम्मेदारी है।
तुम उठो तो सही
तुम्हारी सेना दुशमन की
सेना से भारी है।