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कविता: बापू (रवि कुमार गहतराज, गुवाहाटी, असम)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “रवि कुमार गहतराज की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बापू”:

नमस्ते बापू !
मैं एक भारतीय l
बहुत सुना है आपके बारे में,
बचपन में पढ़ा है आपके बारे में ll
साउथ अफ्रीका में
ट्रेन से बाहर आपको धक्के देकर निकाला,
और आपने देश से अंग्रेजों को धक्के देकर निकाला ll
सभी को एक कर आजादी की लड़ी लड़ाई,
अंग्रेजों से लोहा लेकर उन्हें धूल चटाई ll
ना कभी मारपीट और ना ही कभी हथियार उठाया,
अहिंसा से लड़ने का आपने एक नया मार्ग दिखाया l
देश से बड़ी कोई जात नहीं,
देश से बड़ा कोई धर्म नहीं ll
हम सभी को एकता का मूल मंत्र सिखाया ll
हमेशा शरीर पर श्वेत वस्त्र ओढ़ चले,
गुलामी की जंजीरों को आप तोड़ चले ll
पर आज टुकड़ों में बटा है पहचान,
अमीर-गरीब,ब्राम्हण-दलित,हिंदू- मुसलमान ll
आज यहां कोई भी एक समान नहीं
आपने जिसे आजाद कराया यह वह हिंदुस्तान नहीं ll
बस एक ही दिन आपको याद करते हैं,
पर सच के राह पर कोई नहीं चलता ll
बुराई - भ्रस्टाचार से आगे बढ़ते हैं,
देश को बदलने की बात की बात करते हैं,
पर खुद कोई नहीं बदलता ll
खैर बापू ! आपको मेरा प्रणाम,
बिन आपके जिक्र के इस देश का इतिहास अधूरा है,
और हम सभी की एकता में भारत का अस्तित्व पूरा है
ll