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कविता: हवन की अग्नि (ऋतु लिम्बू, लुकसान, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “ऋतु लिम्बू की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हवन की अग्नि”:

मैं देखती हूँहवन की अग्नि
अमीरों के घर में
चन्दन की खुसबू से युक्त
सुनती हूँ,
इससे बलाएं टलती हैं
दुःख कष्टों का निवारण होता है।
धू-धू कर जलती अग्नि
मानो सचमें सब बलाओं को
अपने में समेट रही हो।
 
फिर मैं देखती हूँ,
चूल्हे में जलती आग
एक ग़रीब के घर में,
जिस पर गर्म कर लोहे को
वो देता है आकार
गढ़ता है हथियार
चाकू, छुरी, खुरपी, हँसिया बेहद धारदार।
और उसी आग में
पकती है दो वक्त भात
जिसको नमक मिर्च के साथ खाकर
कड़कती सर्दी की रात में
ओढ़कर अपने पुराने कम्बल,
सो जाता है वह
उसी आग के पास।
ढीप ढीप कर जलती आग
नहीं बन पाती हवन की अग्नि
और बुझ जाती है अंततः।
 
फिर मेरे मन में
उठते हैं सवाल,
आखिर ये बलाएं कितने प्रकार की होती हैं?
और फिर उसे टालने का अधिकार
वर्ग विशेष को मात्र क्यों है
?