पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “राजा बाबू दास” की एक कविता जिसका शीर्षक है “औरतें रोती है”:
औरतें रोती है
तो केवल सिसकियाँ निकलती है
जिसमें ना जाने कितनी
ममता छुपी रहती है
ना जाने कितना
अथाह प्रेम छुपा रहता है
उसका रोना कोई साधारण रोना नहीं होता
उसके हर एक सिसकियों में
एक-एक संसार बसा रहता है
अपने हर एक आँसूओं से वे
इन्हीं संसार को तृप्त करती रहती है
अपने भूत,वर्तमान और भविष्य के
मांजि में कैद औरतें जब रोती है
तो वह टूटती नहीं है
अदम्य साहस बटोरती रहती है
ताकि भविष्य को संवार सके
औरतों का रोना
बच्चों सा नहीं होता
जो रोते हुए माँ का आँचल ढूँढे
वह रोती है तो चाहती है
उसके बेटे उसके आँसूओं को बाँट लें
पति दो शब्द बोलकर गले से लगा लें
क्योंकि औरतों का संसार
प्रेम और ममता के आधार पर निर्मित होते हैं
इसलिए इसकी चिंता में औरतें रोती है।