पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “राज भट्टराई” की एक कविता जिसका शीर्षक है “एक चाय मजदूर”:
कर्तव्य निष्ठा की पकढनढी पे वह चलता-फिरता
मर्यादा की इज्जत सदेव अपने पास वह रखता
कर्मठ सम्पूर्ण चिथड़ो में लिपटा पूरा उसका जीवन
नित संघर्ष कर भी सफालता की गाथा वह लिख न पाता
भाग्य कुछ आधा कुछ अधुरा सा
हकीकत कुछ सच कुछ झुठा सा
जीवन जीवित पर कुछ मृत्यु समान सा
उजालों गलियारों में कुछ अंधेरा सा
सपने देखने में भी कुछ पाबंदी सा
शासकों ने भी कुछ ठगा सा
नहीं बंधने दिया खुद को,
ख़ुशी ख़ुशी सब गले लगाया,
दुखों को भी पड़ा सर झुकाना,
ग़म को रखा कोसों दूर खुसी खुसी हर लम्हा बिताया।
चाय मजदूर का चरित्र नाप कर
उनकी असुरक्षा को
उनकी बौद्धिक न्यूनता को
उनकी वैचारिक हीनता को
ढांपते हुए, देखता हूं
उपर से दुढता का मुखौटा
लेकिन रुह से कांपते हुए
भयभीत अपने और अपने परिवार के भविष्य के लिए
तड़पते, संघर्ष करते देखता हूं!
हां कुछ ऐसा है एक चाय मजदूर!