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कविता: बचपन की यादें (राजीव रंजन, गया, बिहार)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “राजीव रंजन की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बचपन की यादें”:
 
बचपन बड़ा सुहाना था,वो भी अलग जमाना था।
कभी अंटा कभी गील्ली-डंडा कभी लट्टू नचाते थे,
कभी खेलते आँख-मिचौली कभी पतंग उड़ाते थे,
खेल जीवन का खजाना था,
दिल क्रिकेट का दिवाना था,
बचपन बड़ा सुहाना था,वो भी अलग जमाना था।
विद्यालय पढ़ने जाते थे मिलजुल कर सब साथ में,
घर-घर जाकर बुला-बुलाकर झोला-बोरा हाथ में,
टिफिन में भाग जाना था,
पेट-दर्द का बहाना था,
बचपन बड़ा सुहाना था,वो भी अलग जमाना था ।
 
खिलौने की छीना-झपटी होती थी बहना-भाई में,
झटपट सुलह भी कर लेते थे प्रेम था उस लड़ाई में,
दो दिन पर नहाना था,
मां से रोज पीटाना था,
बचपन बड़ा सुहाना था,वो भी अलग जमाना था।
 
सर पर हाथ पिता का रहता चिंता की कोई बात न थी,
जीवन में खुशियाँ-ही-खुशियाँ गम से मुलाकात न थी,
बिन कमाये खाना था,
यारों संग मौज मनाना था,
बचपन बड़ा सुहाना था,वो भी अलग जमाना था ।
यौवन आता मदमाता बचपन गुम हो जाता है,
जिम्मेदारी बढ़ती जाती चंचलता खो जाता है,
यादों को आज आना था,
गीत में ढल जाना था,
बचपन बड़ा सुहाना था,वो भी अलग जमाना था ।