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कहानी: चिंटू की साइकिल (गगन मधेशिया, बानरहाट, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार गगन मधेशिया की एक कहानी  जिसका शीर्षक है “चिंटू की साइकिल":

        श्रावण का महीना था । रामलाल अपनी टूटी फूटी और टपकती हुई झोपड़ी को निहार रहे थे । एक ओर वर्षा है कि रुकने का नाम नही ले रही थी , मानो ऐसा लग रहा था कि मेघ और वर्षा में प्रतिस्पर्धा चल रही हो , और इस प्रतिस्पर्धा में सफलता बारी - बारी से दोनों को मिल रही थी । इस भीषण  प्रतिस्पर्धा के मूक दर्शक थे रामलाल, उनकी भार्या कमला और पुत्र चिंटू ।

        घर परिवार में काफी दृढ़ थे  रामलाल परन्तु परिस्थितियों के आगे उनकी एक ना चली , पिता  की बीमारी में सारा धन खर्च हो गया, दुख तो यह था कि पिता भी ना बच सके और पिता की मृत्यु के शोक में माता भी चल बसी । अपने माता- पिता के अकेले पुत्र नहीं थे वे , दो भाई और है उनके परन्तु इस दुख की  परिस्थिति में उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया और अपनी अपनी पत्नियों के कहे अनुसार चूल्हा चौंका अलग कर लिया ।पिता के दवा - दारू के खर्च में भी कुछ सहयोग न किया दोनों भाईयो ने ।  रामलाल इन दुखद परिस्थितियों को प्रभु की इच्छा मान कर ,उनका मजबूती से सामना करते गए । घर चलाने के लिए रामलाल रिक्शा चलाते थे  और उनकी भार्या कमला आस पड़ोस के दो घरों में चूल्हा चौका का काम कर लेती थी । रामलाल को यह अच्छा नहीं लगता  पर वह कुछ कर नहीं सकते थे। उन्हें भली भाती ज्ञात था कि उनके भार्या द्वारा किया गया यह लघु सहयोग भी काफी सहयोग देता था  उनके जीविकोपार्जन में ।

         टपकती हुई छत को देख रामलाल मुस्कुरा रहे थे । उनकी मुस्कुराहट का राज था उनका पुत्र चिंटू । इस कठिन परिस्थिति में वो बेचारा एक कमरे के घर में  बिस्तर पर उठ कर बैठा और टपकती हुई नीर के साथ आनंदपूर्वक खेलने लगा , वो ठेहरा बालक उसे क्या पता कि यह हास्य की नहीं अपितु चिंता की बात थी । उसे बेफिक्र हस्ता देख रामलाल अपने सारे गम भूल खिलखिला के  हँस उठे, मानो मरुभूमि में बिन बादल वर्षा का आगमन हो गया हो ।

         हर रात का सवेरा होता है ठीक उसी प्रकार वर्षा ऋतु विदा लेते हुए अपनी सहयोगी शरद ऋतु को आगे का कार्यभार सौंप गई । रामलाल बिना चूके अपने घर के छत के छिद्रों को भरता है , ताकि अगली वर्षा ऋतु में घर धान की खेती ना बन जाए । धीमी सी मुस्कान यह भी याद दिला रही थी किस प्रकार उनका पुत्र चिंटू टपकती हुई छत से गिरते हुए नीर की बूंदों को एक कटोरी में इक्कठा कर खेलता था ।

        चिंटू  अब ४ वर्ष  का हो चुका था और पास के ही पूर्व प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने जाने लगा । रामलाल सुबह उठ नित क्रिया कर अपने काम पर निकल जाते । कमला चिंटू को विद्यालय के लिए तैयार कर उसे विद्यालय पहुंचा कर अपने काम पर चली जाती । चिंटू के आने तक अपना काम खत्म कर घर आ जाती और भोजन बनाती । चिंटू अपने विद्यालय में ही भोजन कर आता , वाहां उसे खिचड़ी और अंडा मिलता वो बड़े चाव से खाता तथा घर भी ले आता । पिता थके हारे रात्रि में घर आते भोजन कर सो जाते , यही उनकी दैनिक क्रिया थी ।

        चिंटू अपने उम्र के बच्चो के संग खेलता और उनके पास साइकिल देख उसके मन में भी साइकिल चलाने की इच्छा होती , वो अपने मित्रो से मांगता पर वे न देते । कोई कहता की टूट जाएगी कोई कहता मेरे पिता ने कहा है किसी को नहीं देना अपनी साइकिल । बालक ही तो था बेचारा उसके मन में भी इच्छा होती । एक दिन चिंटू अपने पिता से साइकिल लाने के लिए जिद्द कर बैठता  है , और पिता के अनेक प्रयत्नों के बाद भी नहीं मानने पर उसे दीवाली पर साइकिल दिला देने का वादा कर देते है । वह वादा यह सोचकर  कर देते हैं कि कुछ दिनों में वो भूल जाएगा और यदि न भुला तो कुछ दिनों की मियाद और बढ़ा दूंगा । हाथ में पैसे हो गए तो कोई सस्ती सी  साइकिल रहीम चाचा के दुकान से दिला दूंगा ।

        पिता से मिले आश्वासन को गांठ बांध चिंटू दौड़ता हुआ अपने मित्रो के पास जाता है और उनसे कहता है , मेरे पिता मुझे भी साइकिल दिला देंगे दीवाली पर । छोटे से बालक कि खुशी देखने लायक थी । उम्मीद की पुल बांध वो दीवाली के आने का इंतजार करने लगा । कभी - कभी विद्यालय से आते वक़्त  सीधे रहीम चाचा (रहीम चाचा एक साइकिल के दुकान के स्वामी है, बड़े ही नेक और दिलदार व्यक्ति है वे , परन्तु दुर्भाग्य ने उनके साथ भी खेल खेल दिया , उन्होंने अपने १० वर्ष के पुत्र असफाक को एक लम्बी बीमारी के कारण खो दिया था ) की साइकिल दुकान पर जा बैठता और उनसे साइकिल के बारे में पूछता,

चाचा ये कौन सी साइकिल है ?

चाचा वो कौन सी साइकिल है ?

आप मुझे साइकिल चलाना सीखा दोगे ना ?

इसका तो पहिया बड़ा है, ये चलेगा कैसे ?

रहीम चाचा उसकी मासूमियत भरी बाते बहुत ध्यान से सुनते । उन्हें बहुत अच्छा लगता चिंटू का बोलना । उनसे घुलने मिलने के बाद चिंटू नियमित रूप से उनके दुकान पर आता और उनसे ढेर सारी बाते करता । रहीम चाचा उसे कचौरी और समोसा खिलाते । रहीम चाचा उससे विद्यालय में पढाएं गए पाठ पूछते एवं चिंटू की मीठी और हकलाती ज़बान से बड़े ध्यान से सुनते । ऐसे हस्ते मानो वह भी चिंटू के भाँति छोटे से बालक है ।

        चिंटू अपनी माँ से हर रोज पूछता कि ,"माँ दीवाली कब आएगी , पिताजी मुझे साइकिल दिला देंगे ना?'' साइकिल का रंग ऐसा होगा, उसके पहिए ऐसा होंगे । मानो उस बच्चे के मन में घर कर गया था साइकिल । करता भी कैसे नहीं , अपने दोस्तो की साइकिल चलता देख उसकी अभिलाषा पुनः जाग जाती । रहीम चाचा के दुकान पर साइकिल देखने जाना ये सब उसे अच्छा लगता । बच्चे का दिल जो था बड़ा ही कोमल और निश्चल । उसे क्या पता कि उसकी मित्रता अपने पिता समान रहीम चाचा से हो गई थी, और रहीम चाचा  भी उस नन्हे से बालक के परम मित्र हो चुके थे ।

        रहीम चाचा को भी उसके साइकिल की चाहत का पता चल गया था । वे कहते मेरे पास साइकिल बनाने के लिए आती है , तू उसे चला सकता है । लेकिन चिंटू झटक के कहता नहीं रहीम चाचा मुझे मेरे पिताजी साइकिल दिला देंगे और उन्हीं का दिलाया हुआ साइकिल चलाऊंगा मै, चाहे कुछ भी हो जाए । बच्चे की मासूमियत पर बड़ा खुश होते रहीम चाचा और उसे खुशी से चूम लेते ।

        रामलाल ने अपने  कहे अनुसार चिंटू को साइकिल दिलाने के लिए पैसे जोड़ने शुरू कर दिए थे और उन्हें पूरी उम्मीद थी कि दीवाली से पहले वे पूरा पैसा जमा कर लेंगे और बच्चे को नई साइकिल दिला देंगे । रामलाल को यह भलीभाँति अभास था कि बच्चे को वादा कर के साइकिल नहीं दिलाया तो उसका मासूम सा दिल टूट जाएगा और आगे से वो अपने पिता पर कभी विश्वास नहीं करेगा ।

समय का पहिया घूमता रहा और दीवाली करीब आई । सभी घरों में दीवाली की तैयारी शुरू हुई । घर की साफ सफाई , घर को सजाना नए पोशाक सिलवाना । चिंटू बड़ा खुश था और हो भी क्यों नहीं उसके लिए खुशी की दो बाते थी, एक तो दीवाली की खुशी और दूसरी यह कि दीवाली पर उसके बाबा उसे नई साइकिल दिलाने वाले है ।

        रहीम चाचा और रामलाल की एक दूसरे से अच्छी बनती थी । रामलाल अपने रिक्शा की मरम्मत इत्यादि उन्हीं के दुकान पर कराते थे , तभी से उन दोनों की अच्छी बनती थी । दीवाली के एक सप्ताह पहले रामलाल रहीम चाचा के दुकान पर आके चिंटू के लिए नई साइकिल पसंद कर उसे दीवाली तक मंगवाने के लिए पेशगी दे देते है । रहीम चाचा का चिंटू से बहुत गहरा लगाव हो चुका था इसलिए उन्होंने बिना मुनाफे के साइकिल की कीमत रामलाल को बता दी , साइकिल की कीमत १२०० रुपए तय हुई और रामलाल ने उन्हें पेशिग के तौर पर २०० रुपए दे दिए और बाकी के १००० दीवाली के दिन देने का वादा करते हुए साइकिल दीवाली तक मंगवा देने की विनती  कर अपने घर चले आते है ।

 

        किस्मत को कुछ और ही मंजूर था । घर पहुंचते ही रामलाल को पता चलता है कि चिंटू को बड़ी तेज बुखार है और उसका बदन आग की तरह तप रहा है । रामलाल भागे भागे दवा के दुकान पहुंचते है और समस्या बता दवा ले आते हैं । दवा खिला कर चिंटू को सुलाते है । लेकिन बुखार है कि उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था । रात भर बिना सोए अपने बच्चे की सेवा करता रहा, कभी पानी की ठंडी पट्टिया उसके माथे पे लगाता तो कभी उसके  तलवे को मलता लेकिन बुखार है कि उतारने का नाम ही नहीं ले रहा था । किसी तरह रात बीती , सुबह चिंटू की तबीयत में सुधार न देख उसे शहर के स्वस्थ केंद्र लेजाते हैं ।  स्वस्थ केंद्र जाके पता चलता है कि यह कोई सामान्य बुखार नहीं है और खून की जांच से ही पता लग पाएगा कि आगे चिकित्सा किस तरह की जाए। स्वास्थ्य केंद्र में रक्त जांच की कोई सुविधा नहीं थी इसलिए रामलाल को यह जांच बाहर से करना पड़ा । रिपोर्ट शाम तक आया तब तक चिंटू की तबीयत में कोई  सुधार नहीं  था। डॉक्टर के रिपोर्ट देखने पर पता चला कि चिंटू को मलेरिया बुखार है । वैसे घबराने की कोई बात नहीं थी मलेरिया कोई ला इलाज बीमारी नहीं थी , बस फिक्र यह थी कि चिंटू एक छोटा सा बच्चा है और मलेरिया की दवाइयों से उसका शरीर टूट जाएगा और काफी कमजोरी आ जाएगी । अब मलेरिया का इलाज शुरू हुआ , यू तो सरकारी स्वास्थय केन्द्र है लेकिन वहां  हमेशा सारी दवाइयां उपलब्ध नहीं होती और इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ । रामलाल को कई सारी दवाइयां बाहर से लेनी पड़ी , उसने बिना  विलंभ किए सारी दवाइयां लाकर डॉक्टर को दे दिया । इलाज शुरू होते ही  चिंटू की तबीयत में काफी सुधार दिखने लगी ।  ४ वर्ष का नन्हा बच्चा, दो दिन में काफी कमजोर हो गया था । उसके पिता और माता अपना काम छोड़कर  उसके पास बैठे रहते , उसका कमजोर होता शरीर देखा न जाता उनसे , कहां वो हस्ते खेलते रहने वाला चिंटू अब गुमसुम सा अपास्त हस्पताल के चारपाई पर पड़ा रहता । दो दिनों से जब चिंटू को रहीम चाचा ने नहीं देखा तो उसके घर गए , उन्हें उसकी फिकर होने लगी । घर पहुंचे तो पता चला कि चिंटू बीमार है और अस्पताल में है , वे खुद को रोक ना पाए और भागे - भागे अस्पताल पहुंचे । वहां  रामलाल का लटका हुआ चेहरा देख उसे सांत्वना देते हुए पूछा '' ये सब कैसे हुआ‌ ? ''  अभी दो दिन पहले मेरे दुकान पर आया था वो , मुझे अपने पाठशाला की कहानी सुना रहा था और अब यहां लेटा हुआ है । रहीम चाचा चिंटू से मिले और उससे बाते करने की कोशिश की लेकिन उसके मिजाज में कुछ मीठापन नहीं था यह देख वे भी दुखी हो गए । उनसे यह देखा न गया और वे लौटने लगे तब रामलाल ने उन्हें रोका और कहा, ''रहीम भाई आप साइकिल का ऑर्डर रद्द कर दो , अब मेरे पास पैसे नहीं है , जो पैसे मैंने चिंटू के साइकिल और दीवाली के फूल झाड़ियों के लिए जोड़े थे, वो सब इस बीमारी में खर्च हो गए । अब मेरे पास कुछ नहीं है , मेरा हाथ बिल्कुल खाली है । अब बस चिंटू ठीक हो जाए , उसे घर वापस ले आऊं , फिर पैसे जोड़ कर उसके लिए साइकिल ले लूंगा ।"   रहीम चाचा बिना कुछ कहे रामलाल के कंधे पर हाथ रख , अपना सिर झुकाए वाहां से चले जाते  हैं । शुक्रवार का दिन था रहीम चाचा मस्जिद गए और अल्लाह से चिंटू के ठीक होने की दुआं करने लगे ।

 

        अगले दिन चिंटू का बुखार थोड़ा कम हुआ । वो काफी कमजोर हो चुका था , उसके चेहरे की मुस्कुराहट कहीं खो गई थी । रामलाल डॉक्टर साहब से पूछते हैं , "क्या चिंटू दीवाली तक ठीक हो जाएगा ? क्या हम उसे घर ले जा सकेंगे  दीवाली तक ? "। डॉक्टर कहते है , "हां , अब बस दो से तीन दिन में ये ठीक हो जाएगा और अपने घर जा सकेगा । आपको बस इसके खाने पीने का उचित ध्यान देना होगा , ये मलेरिया की वजह से कमजोर हो गया है । अच्छा खान पान रहा तो तुरंत दौड़ने लगेगा। "  डॉक्टर की ये बाते मानो अमृत की भाती रामलाल के कानों को लगी और वे हाथ जोड़े डॉक्टर को इसका श्रेय देने लगे ।

 

        दो दिन बाद साइकिल की डिलीवरी आती है रहीम चाचा के दुकान पर । उन्हें साइकिल देख रामलाल की बात याद आती है । कुछ सोचने के बाद वे डिलीवरी वापस ना करवा कर साइकिल रख लेते है । रहीम चाचा को रामलाल के भाई से पता चलता है कि चिंटू आज घर वापस आ रहा है , यह सुन रहीम चाचा भी हस्पताल पहुंचते है , रामलाल से मिल कर चिंटू के लिए लाए कुछ फल दे देते है, और वहां से अपनी दुकान को चले जाते है । चिंटू की हस्पताल से छुट्टी करा कर रामलाल उसे  अपनी रिक्शा में बिठा कर घर लाते है । घर के रास्ते में रहीम चाचा का दुकान पड़ता है , उस दुकान से गुजरते वक्त रामलाल को ये याद आता है कि अगर ये बीमारी न हुई होती तो शायद वो आज अपने बेटे के लिए नई साइकिल ले जाते, उसे देख चिंटू कितना खुश होता । उसकी हँसी उसकी मुस्कुराहट रामलाल को  मंत्रमुग्ध कर देती है, खैर कोई बात नहीं कुछ दिन बाद साइकिल ले लूंगा ये सोच वे आगे बढ़ जाते है । चिंटू भी काफी गुमसुम सा नीरस होकर कुछ सोचते हुए आता है । मानो घर की परिस्थितियों से अवगत हो रहा हो , और उसके उत्थान के लिए सहयोग करना चाहता हो।

 

        घर पहुंच रामलाल चिंटू को कहते है तू घर में जा, मैं अपनी रिक्शा में ताला लगा कर आता हूं । इतना सुन चिंटू चुपचाप अंदर चला जाता है । रामलाल अपने रिक्शा में ताला लगा ही रहे थे कि वो चिंटू की जोर जोर से खुशी से चिल्लाने की आवाज सुनते है । चिंटू की आवाज़ सुन उन्हें बहुत अच्छा लगता है लेकिन सोचने लगते है ,अभी तो वो चुप - चाप ,गुम - सुम था और अब अचानक चिल्ला क्यों रहा है ऐसा क्या हो गया उसे अचानक । घर के अंदर प्रवेश करने पर देखते है कि चिंटू अपनी पसंदीदा साइकिल पर बैठा है । उसके चेहरे की लालिमा वापस आ चुकी थी , उसकी मुस्कान वापस आ चुकी थी , उसे इस अवस्था में देख कोई नहीं कह सकता कि ये अभी -अभी हस्पताल से ५ दिन बाद लौट रहा है । यह देख रामलाल को खुशी तो बहुत हुई, क्योंकि अपने बच्चे को साइकिल दिलाने की खुशी का साक्षी, वो बड़ी बेसब्री से बनना चाहता था । लेकिन ये हुआ कैसे , कौन ये साइकिल यहां रखकर गया । उसे अच्छी तरह ये याद था कि उसने रहीम चाचा को साइकिल के लिए मना कर दिया था तो ये हुआ कैसे ।

 

        रामलाल भागा - भागा रहीम चाचा के दुकान पर जाता है । रहीम चाचा का मुस्कुराता हुआ चेहरा देख वो समझ जाता है कि इसमें जरूर उन्हीं का हाथ है । वो बड़े विनम्र भाव से पूछता है," रहीम भाई वो साइकिल आपने रखी है क्या मेरे घर में?"  । रहीम चाचा मुस्कुराते हुए कहते है ," हां भाई वो साइकिल मैंने ही रखवाई है आपके घर में । आपके कहे अनुसार दीवाली के पहले ही मंगवा दी मैंने , अब तो मानते हो ना अपने रहीम भाई को" । रामलाल बड़े ही विनम्र भाव से कहते है "लेकिन रहीम भाई मैंने आपको मना कर दिया था , आपको कहा तो था कि साइकिल के लिए बचाएं हुए पैसे तो चिंटू की बीमारी में खर्च हो गई । अब मै कहा से लाऊ पैसा ।" ये सुन रहीम चाचा बोलते है,  "तुम फिक्र ना करो दोस्त , उसके  चेहरे की रौनक वापस लाने के लिए मैंने ये किया , वो मेरा भी तो बच्चा है , मेरी कोई औलाद नहीं है , मै चिंटू में ही अपने असफाक को देखता हूं ।"  ये सुन रामलाल कहते है , "लेकिन रहीम भाई आप जानते हो मैं ऐसे कुछ नहीं ले सकता , ये ग़लत लगेगा "। रहीम चाचा बोलते है ," मुझे पता है कि तुम एक खुद्दार इंसान हो, तुम इसे उधार समझ कर रख लो, २०० तो तुम पहले ही दे चुके हो बाकी धीरे - धीरे चुका देना । अमा मियां मैं भी यही हूं और तुम भी यही फिर इतना सोचते क्यों हो । अब तुम घर जाओ बच्चे की सेवा करो और वो जैसे ही ठीक हो घर से निकल सके मेरे पास भेजना , मैंने उसे साइकिल चलाना सिखाने का वादा किया है । उस वादे कों पूरा किए बिना मुझे चैन नहीं आएगा ।"

       इतना कहा ही था रहीम चाचा ने कि चिंटू की आवाज़ दूर से आती है,

        "रहीम चाचा ये देखिए नई साइकिल , मेरे पिताजी ने दिला दी , मैंने कहा था ना आपसे की मेरे पिताजी मुझे दीवाली पर साइकिल दिला देंगे ''

        अब चलो अपना वादा पूरा करो  मुझे साइकिल चलाना सीखा दो।"  चिंटू के चेहरे की खुशी देख रहीम चाचा की आंखो में आंसू आगए । रामलाल वहीं पास में खड़ा सब देख रहा था । अपने मासूम से बच्चे में इतनी जल्दी यह विद्युतीय परिवर्तन देख दंग रह गए वे भी अपनी अश्रु धारा रोक ना सके और ईश्वर को तथा रहीम भाई को इसके लिए धन्यवाद् करने लगे