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कविता: मानवता कलंकित हो रही (नीलू गुप्ता, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार नीलू गुप्ता  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मानवता कलंकित हो रही":

ईश्वर तेरी लीला अपरम्पार

जो है हमारी समझ के पार,

कोरोना तो आईं अमीरों के संग

पर सजा भुगत रहे हैं गरीब जन।

करनी किसी और की

भुगतान कोई और कर रहा,

कुछ तो घर में आराम फरमा रहे

और कुछ का जीवन तो बोझ है बना।

भूख,तंगी, लाचारी, बेरोजगारी

गरीबों के पल्ले आ पड़ी,

नये - नये पकवान तो सिर्फ

अमीरों के यहां ही है सजी।

एक समय का भोजन भी

नसीब में किसी के नहीं मिल रहा,

पूरे परिवार सहित कोई

विष ग्रहण है कर रहा।

बांट कर एक रोटी कही

सौ तस्वीरें ली जा रही,

नाम,यश, प्रसिद्धि की होड़ में

मानवता कलंकित हो रही।