पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डां. विशाल सिंह 'वात्सल्य' की एक कहानी जिसका शीर्षक है “मेरी बिटिया":
"आशीष सुनो ना..... सुनो ना यार" ....रोहित बार बार आशीष से कहें जा रहा था। आशीष रोहित का सबसे अच्छा मित्र था जिस से वह सब कुछ साझा कर सकता था।
"हां बोल, सुन तो रहा हूँ, क्या हुआ?" आशीष ने जवाब दिया।
"यार कल मैंने एक बच्ची को डांट दिया" ... "क्य़ों ?" आशीष ने रोहित को टोका।
"कुछ शरारत की उसने, मैं कुछ परेशान था और क्लास के सामने डांट दिया
उसे"......"फिर क्या हुआ नयी बात है तुम्हारी कोई ... गुस्सा नाक पर
रहता हैं तुम्हारे तो"....आशीष ने फिर टोका।
"हां पर"... "क्या पर" .....आशीष सवाल दागने लगा।
"वो मुझे बाद में साॅरी बोलने आई"....."साॅरी वाह यह
तो अच्छा है।"...."हां पर"..... "फिर पर....अब क्या हुआ?" आशीष ने फिर टोका।
"वो मै राहुल सर के साथ बैठा हुआ था तब वो आयी... मासूम सा चेहरा
लेकर ...दोनों कान पकड़ कर बोली... साॅरी सर।...मेरा कलेजा मुंह को आ गया उसे ऐसे
देख कर... यें क्या कर दिया मेने इतनी प्यारी सी गुड़िया को डांट दिया वो भी जरा
सी बात पर... मैं भी तो उसे परेशान कर देता हूं सवाल पूछ पूछ कर और आज ङाट दिया
उसे".... रोहित कपकपाती आवाज में बोल रहा था।
"पर अब तो सब सही है ....सब सही हो गया ना तुम दोनों के
बीच"...... "हां सब सही है पर"...रोहित ने अबकी बार आशीष की बात
काटते दी।
"ये तेरा पर खत्म होगा या नहीं....?" आशीष झल्ला पडा।
"हां सुन तो ... मैं उसे उस समय देखकर थोड़ा भावुक हो गया ओर
मैने उसके सिर पर प्यार से हाथ फिरा दिया .. कहीं उसे बुरा तो नहीं लगा होगा ...
मुझे अपनी बिछङी हुई बिटिया उसे देख कर याद आ गई थी...."
"अरे तू क्यों इतना सोचता है" आशीष कहने लगा..."कल बात
कर लेना उससे और क्लास को बोल देना कुछ गलतफहमी हो गयी थी, वो बच्चे उससे कुछ नहीं
बोलेंगे फिर ... अच्छा मै चलता हूँ, तू परेशान ना हुआ कर हर बात पर" ...कह कर आशीष चला गया
.......।
रात के वक्त रोहित कुछ पढ़ रहा
था तभी मोबाइल पर बीप की आवाज आई ... मैसेज था किसी का...लिखा था "सर आपसे
कुछ पूछना है, मैं वही हूँ
जिसे आप ने कल ङाटा था" ...."हां बेटा साॅरी" रोहित ने जवाब
दिया.... फिर मेसेज आया "आप साँरी नहीं बोलिये आप बङे है डांटा तो क्या हुआ
...बस एक बात पूछनी है आपसे" ...."हां पूछो" रोहित ने जवाब दिया।
"आपने सिर पर हाथ क्यो रखा था?" उधर से मेसेज आया।
"आपको अच्छा नही लगा ना बेटा ...वो बस आपको कान पकड़कर साँरी
बोलता देख कर दिल भर आया ... ऐसा लगा जेसे मेरी बिटिया सामने है, तो अपने आप को रोक नहीं पाया
बस".....रोहित ने बडे प्यार से कहा।
"अच्छा सर बस यहीं पूछना था ...नमस्ते".... "हां
नमस्ते" रोहित ने कहा।
अगले दिन क्लास में रोहित ने
कहा, "बेटा मुझे क्लास से कुछ कहना
है"... "नहीं सर आपको कुछ नहीं कहना" रोहित की बात काटते हुए उसने
कहा..... "आप और मेरी सब बातें साफ हो गई है ना, मुझे किसी से कुछ सफाई नहीं
देनी ना आपको देनी हैं"..... और उसने एक प्यारी सी मुस्कान दे दी.... हस दिया
रोहित उसे देखकर.... साथ में सारी क्लास भी....रोज की लडाई जो थी दोनों कीं।
क्लास पूरी हुयीं रोहित बाहर आ
गया.... "सर"... पीछे से आवाज़ आई... मुड़कर देखा.... वहीं थी...
"हां कहो कुछ पूछना है और".... "नहीं कुछ कहना है"...
"हां कहों ना"... रोहित ने कहा उससे। "में भी तो आपकी बेटी हूँ
ना".... "हां... क्य़ों"....रोहित ने उससे पूछा।
"आज से मैं आपकी बेटी हूं बस.... एक बार आपको पापा कह कर पुकारू" ...." हां" .... कपकपाती आवाज में कहां रोहित ने .... "बस यही कहना था आपसे.....और कोई गल्ती हो मेरे से तो फिर से डांट देना".... "हां....मेरी बिटिया " रोहितने कहा, ओर वो हंसती हुई भाग गयी ... रोहित नम आँखों से उसे एकटक जातें हुए देखता रहा अब उसे एक नया संसार मिल चुका था।