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कविता: चूड़ियाँ (निशा गुप्ता, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार निशा गुप्ता की एक कविता  जिसका शीर्षक है “चूड़ियाँ ":

"चूड़ी पहकर घर मे बैठो" दुबारा न सुनना,

सुन-सुनके ये मुहाबरे से हमें लगता है सदमा !

 

चूड़ी वाली हाथ कभी न होता कमजोर और बेकार,

जो जिद्द पे आ गई तो अपनी ही चला देगी ये सरकार !

 

इन हाथो मे चूड़ी जब खन -खन खनकती है,

घर के सारे द्वेष तब इन खन-खन से भाग खड़ी होती है !

 

चूड़ी पहनने वाले हाथो को समझना न कमजोर,

चूड़ी पहकर बैठी जरूर है लेकिन है नहीं कामचोर !

 

जब से इन हाथो मे पहनाई गई चूड़ियाँ,

तब से दो घरों की मुझमें आ गई जिम्मेदारियाँ !

 

पति के जाने से जिसदिन चूड़ियाँ टूट के बिखरती है,

उसदिन से स्त्री अपने जिम्मेदारियों मे और ज्यादा सवरती है !