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कविता: हम मजदूर हैं (त्रिलोक नाथ पांडेय, कोलकाता, पश्चिम बंगाल)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार त्रिलोक नाथ पांडेय  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हम मजदूर हैं":

माना कि हम मजदूर हैं

व्यवस्था के आगे मजबूर हैं

प्रश्न यह उठता है

हर काल में मजदूर ही

मजबूर क्यों रह जाते हैं।

अन्न हम उगाते हैं

तन भी गलाते हैं

चिलचिलाती धूप में

वोट भी दे आते हैं

प्रश्न यह उठता है

हर काल में मजदूर ही

मजबूर क्यों रह जाते हैं?

 

लोहे को पिघला हथोड़ा बनाते हैं

पर अफसोस

अपनी बदकिस्मती के पत्थर उससे

हम तोड़ भी न पाते हैं

श्रम जल दिन-रात बहाते हैं

ये कैसी व्यवस्था है

दो जून की रोटी भी

अपने नसीब में न बटोर पाते हैं

प्रश्न यह उठता है

हर काल में मजदूर ही

मजबूर क्यों रह जाते हैं?

 

खींच लें जो हाथ अपने

एक दिन के लिए भी पीछे

भरभरा कर गिर पड़ेंगे

व्यवस्था के हर मोहरे

पर अफसोस

हम ऐसा कुछ कर क्यों न पाते हैं?

न चाह कर भी हर काल में हम

व्यवस्था के आगे हाथ ही फैलाते हैं ।