आज सुबह से ही
रिमझिम रिमझिम मोतियों की बड़ी बड़ी बूँदें ख़ुशियों से झूमती हुई माँ वसुंधरा को
सराबोर किये जा रही हैं...न चाहते हुए भी शीतल बयारों का स्पर्श मेरे तन मन को
रूमानी कर रहा है....मैं अकेली बालकोनी में लगे झूले पर बैठी अद्भुत छटा का रसपान
करती,मन ही मन पुराने ख़यालों में खोती,दिवा स्वप्न देख
रही हूँ...
बारिश बहुत तेज थी,मैं कॉलेज के सामने मारुति 800 की ड्राइविंग सीट पे बैठकर
बारिश कुछ थमने का इन्तज़ार कर रही थी.. बाहर सब धुंधला सा दिख रहा था, इस कारण ड्राइविंग भी मुश्किल थी। अचानक मैंने
देखा, कोई छाता से बमुश्किल अपने को ढकने की कोशिश कर
रहा है.. छाता उड़ा जा रहा है..अरे ये तो दीपक है..आज ही तो introduction के दौरान उसने अपना नाम दीपक बताया था! “आ जाओ दीपक मैं तुम्हें घर छोड़ दूँगी.. क्यों गीले होने पे
तुले हो?”
मैंने विंडो का शीशा
थोड़ा गिराते हुए बोला।औपचारिकता के लिए एक बार उसने कहा “रहने दो”... पर दबाव देने पर
वो मेरी बग़ल वाली सीट पे आकर बैठ गया! बारिश भी थोड़ी कम हुई.. मैंने ड्राइविंग
स्टार्ट किया...और “ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी
वो बरसात की रात, एक अंजान हसीना से
मुलाक़ात की रात “गाना लगा दिया...दीपक
थोड़ा शर्माता कभी नीचे देखता कभी बाहर की ओर..दस मिनट तक बिलकुल चुप्पी बनी
रही... फिर मैंने ही चुप्पी तोड़ा..” मौन व्रत तो नहीं
रखा है तुमने”... उसने झेपते हुए कहा “नहीं नहीं .. मैं बरसात enjoy कर रहा हूँ.. ये गाना और ये मौसम!” कहकर मेरी आँखों
में देख कर एक मधुर सी मुस्कान बिखेर दी! मुझे बल मिला.. मैंने गाड़ी बोटैनिकल
गार्डेन की ओर मोड़ दी.. उसने कोई विरोध भी ज़ाहिर नहीं किया! बोटैनिकल गार्डेन
पहुँचकर हम घूमते रहे..एक दूसरे की जानकारियाँ प्राप्त करते रहे.. इस बीच दीपक
कभी-कभी बेहिचक मेरा हाथ पकड़ लेता..ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो एक एक पेड़ पौधे
स्नान ध्यान कर अपनी पूर्ण हरीतिमाओं के साथ आँचल हिलाकर हमारा अभिनंदन कर रहे हों
और हौले हौले गुनगुना कर आशीर्वचनों से हमें नवाज़ भी रहे हों!
दीपक
भागलपुर के किसी गाँव से इन्टरमीडिएट पास कर पहली बार शहर आकर कॉलेज में दाख़िला
लिया था..वह चूँकि पढ़ने में बहुत अब्बल था, इसलिए उसके घर
वालों ने शहर भेज कर पढ़ाने का निर्णय लिया था!
मेरे पिता का
पटना में ही ज़ेवर ज़ेवरात का बड़ा कारोबार था, पैसों की कमी
नहीं थी..इसलिए मुझे कॉलेज आने जाने के लिए एक मारुति कार दी गई थी!..वही कार
हमारे प्रेम का साक्षी था...
कॉलेज के
क्लासेज़ ख़त्म होने पर हम हर दिन कहीं न कहीं घूमने जाते..और कहीं बैठकर दीपक
मेरा हाथ थामकर “ ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी
वो ....” गाना मुझे अवश्य सुनाता! ये गाना भी हमारी
दिनचर्या में शामिल हो गया था!
ऐसे ही
दिन महीने बीतते गये, हम स्नातक पास किये, फिर हमलोगों ने स्नातकोत्तर में दाख़िला
लिया..अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर परीक्षा पास करने के बाद उसी कॉलेज में मुझे
व्याख्याता की नौकरी मिल गई ।दीपक यू. पी. एस. सी. की प्रतियोगिता परीक्षा देना
चाहता था..सो एक वर्ष बाद आई .आर .एस. हेतु उसका चयन हुआ। नौकरी में योगदान देने
के उपरांत उसने मेरे पापा से हमारी शादी की बात की..दोनों परिवारों में बातें हुई, फिर हमारी शादी हो गई!
अचानक मेड ने मेरी
तंद्रा भंग करती हुई कहा.. “आँटी चाय”ओह्ह कहती हुई मैंने चाय की ट्रे पकड़ ली.. दो कप चाय और एक
प्लेट में चार नमकीन बिस्कुट... दीपक के गये छ: महीने हो गये हैं...तब से मैं उसके
हिस्से की चाय भी पीती हूँ और बिस्कुट खाती हूँ!... “दीपक, लोग कहते हैं तुम
नहीं हो.. पर मुझे लगता अब तुम मेरे और क़रीब, मेरे ह्रदय की
धड़कन में बसते हो... अब मैं हर क्षण तुम्हें स्पर्श करती हूँ... मेरी साँसों के
साथ तुम्हारी साँसें चलती हैं... मेरी धड़कनों के साथ तुम्हारे ह्रदय ने भी धड़कना सीख लिया है...मैं हर पल तुम्हारा गाना ‘ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात... ‘सुनती हूँ.. तुम्हें हमेशा मुस्कुराते हुए देखती हूँ.. अब
तुम मुझपे कभी ग़ुस्सा नहीं करते....