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कहानी: दार्जिलिंग की अधूरी यात्रा (गगन मधेसिया, बानरहाट, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार गगन मधेसिय की एक कहानी  जिसका शीर्षक है “दार्जिलिंग की अधूरी यात्रा":

"यह कहानी लिखने का उद्देश्य मनोरंजन के साथ – साथ कुछ आस्था और विश्वास का संदेश देने का है । मै गगन मधेशिया पुरानी लेखकों से प्रभावित होकर यह कार्य में अग्रसर हो रहा हूं । यह मेरी तृतीय रचना है । खाली समय में अपने लेख लिखता हूं । मैंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पश्चिम बंगाल में पूरी की। मैंने अंग्रेजी में एम ए किया है, तथा इतिहास से एम ए कर रहा हूं । हिंदी भासा के प्रति मेरी लगाव के कारण मै हिंदी में लिख रहा हूं  तथा भविष्य में अपनी लेखों को भोजपुरी एवं अंग्रेजी में अनुवाद करने कि इच्छा रखता हूं। धन्यवाद् ।" --- गगन मधेसिया 


दार्जिलिंग की अधूरी यात्रा

        कहानी बंगाल की  एक प्यारी सी शहर सिलीगुड़ी की है। दार्जिलिंग से सटा हुआ यह शहर काफी सुंदर और समृद्ध है । यहां लगभग हर धर्म जाति और भाषा के लोग बड़े ही खुशहाली से रहते है। यह शहर कई देशों से भी सटा हुआ है, जैसे की नेपाल, भूटान, चीन और बांग्लादेश ।


        सिलीगुड़ी  से दार्जिलिंग और सिक्किम पास होने के कारण  यहां सैलानियों का आना लगा रहता है, चुकी सिक्किम हो या दार्जिलिंग दोनों ही स्थानों पर जाने के लिए सैलानियों को सिलीगुड़ी होते हुए ही जाना पड़ता है ।

        कहानी एक छोटे से परिवार की है जहाँ मोहनलाल अपनी पत्नी सावित्री  और दो बेटे रमेश और राजीव के साथ बड़ी ही खुशहाली से रहते है।  वैसे तो मोहनलाल एक चाय विक्रेता है और सिलीगुड़ी मार्केट यानी कि हांगकांग मार्केट में चाय का छोटा सा स्टल लगाते है । आपको बता दूं की  हांगकांग मार्केट सिलीगुड़ी के एक बड़ी मार्केट है, जहां कई प्रकार की विद्युतीय उपकरण , कपड़े, खाने के समान इत्यादि काफी वाजिब कीमत पर मिलते है, वहां के रहने वालो के साथ – साथ पर्यटकों को भी यह  मार्केट पसंद है । मोहनलाल घर परिवार का पेट भर सके इतना तो कमा ही लेते है। उनकी श्रीमती एक कुशल  गृहिणी है। बड़ा पुत्र रमेश जो कि कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश में है और छोटा पुत्र राजीव अभी कॉलेज की पढ़ाई कर रहा है ।  परिवार बड़ा ही धार्मिक है और नित दिन पूजा पाठ होता है उनके घर में। बिना पूजा पाठ करें उनके घर सुबह का नाश्ता नहीं बनता चाहे कुछ भी हो जाए और बिना स्नान किए किसी को नास्ता नहीं मिलता । कभी- कभी नाश्ता में देर हो जाती और  बच्चे अपनी मां पर‌  नाराज हो जाते की मां ये पूजा पाठ में हमेशा इतना समय क्यों लगा देती हैं , और रोज- रोज पूजा करना जरूरी है क्या । बड़े भाई समझदार थे ,वे छोटे को समझाते है की ये उनकी आस्था की बात है करने दो उन्हें , तुम क्यों भड़कते हो मां पर ,ये ग़लत बात  है छोटे । ये सुनते ही छोटे भाई ने गुस्सा भरी निगाहों से बड़े भाई को देखते हुए अपना गुस्सा शांत की, बड़े भाई से लड़ता तो पिटाई जो हो जाती । गुस्सा शांत होते ही मां के पास गया, प्यार से मां से लिपट कर उनसे क्षमा मांगी और क्लास के लिए अपने कॉलेज चला गया । माता और पिता दोनों ही बड़े धर्मी प्रवृति के थे । वे नित दीन पूजा पाठ करना, ब्राह्मणों को दान देना, गरीब दुखियारे को भोजन कराना इत्यादि जैसे कार्य निरंतर सहर्ष किया करते थे । इन सभी कर्मो की लाभ की आशा किए बिना ही हाथ जोड़ ईश्वर से जो मिला उसका धन्यवाद् करते रहते थे ।

        समय बिता और उनके ज्येषट पुत्र की पढ़ाई पूरी हुईं , रमेश ने अपनी पढ़ाई शहर की सरकारी कॉलेज से अच्छे अंकों से पूरी की , और अपनी परिवार की स्थिति देखते हुए सरकारी बहालियो पर ध्यान देने लगा । उसे बचपन से ही शिक्षक बनने की इच्छा थी , इसलिए वह अपनी डिग्री प्राप्त करते ही इसकी प्रयास में लग गया , एक सुनहरा अवसर पाते ही उसने डब्लयू बी एस एस सी (वेस्ट बंगाल स्कूल सर्विस कमीशन) की परीक्षा दी और प्रथम प्रयास में ही अच्छे रैंकिंग से उत्तीर्ण कर गया । अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने के कारण उसे अपनी पहली इच्छा के अनुसार अपने घर के पास के  विद्यालय जहां उसने पढ़ाई पूरी की थी,वहीं नियुक्ति हो  गई । यह बहुत‌ही खुशी की बात थी पूरा परिवार के लिए और उनके मोहल्ले के लिए । यह बात माता पिता को पता चलने से पहले पूरे मोहल्ले को पता चल गई थी ।


        बरसात का दिन था, रिम झिम बारिश हो रही थी। रमेश के पिता बरसात के रुकने का इंतजार कर रहे थे । वे मन ही मन इन्द्र देव से प्रार्थना कर रहे थे कि बारिश रुक जाए और वे अपने दुकान पर जाए।  एक छोटी सी चाय की दुकान है उनकी सिलीगुड़ी मार्केट में , वे इतना ज्यादा तो नहीं कमाते थे कि बंगला गाड़ी खरीद सके लेकिन अपने परिवार को पाल सके इतना धन अपने मेहनत से जुटा लेते थे। रमेश के प्रिय जन उनके घर आ गए और उन्हें ये खुशी का समाचार देते हुए मिठाई की मांग करने लगे । इतने में ही रमेश अपना टूटा हुआ छाता लिए आधा भीगा हुआ घर के दहलीज पर पहुंचा ही था कि उसकी मां ने उसे खुशी से चूम लिया ,यह मात्र प्रेम का आशीर्वाद पाकर रमेश समझ गया कि घर पे खुश खबरी आ चुकी है । वो खुशी से अपने माता -पिता के चरणों को छूते हुए सारे श्रेय को उनकी झोली में डाल कर निश्चिंत होते हुए मिठाई का डब्बा उन्हें सौंपता है। खुशी तो पिता को भी बहुत थी पर वे बया ना कर पाए और नम आंखो से बहती हुई खुशी की अश्रु धारा को छुपाते हुए अपने पुत्र को गले से लगा लिया । मानो उनके कंधे से एक बोझ उतर गया हो, एक लड़का ऐसे स्थान पर था जहां वो अपने परिवार को संभाल सकता था । कुछ छन बीते ही थे कि उनके अनुज राजीव का आगमन हुआ घर पर , उसकी चेहरे की लालिमा बता रही थी कि उसे शुभ समाचार मिल चुकी थी । जी हां उसे नुक्कड़ के मंगल चाचा ने सब कुछ बता दिए थे ये सुनते ही वो बसंत के वायु के भाती उड़ता हुआ घर पहुंचा जहां अपने परिवार के सभी सदस्यों के आंखो में खुशी के अश्रु बहते देख अपनी अश्रु पे लगाम ना लगा सका और बसंत के बारिश की भांति बह गया । माता ने उसे भी गले से लगा लिया और भगवान का धन्यवाद् किया। पिता ने आँसुओं को पोछते हुए कहा यह सब तुम्हारे दादा- दादी का आशीर्वाद है , देवी देवताओं का आशीर्वाद है जिन्हे हम दिन रात नमन करते रहते है । पिता ने खुशी के दिन को गवाना मुनासिब ना समझा और काम पर ना जाने का फैसला किया परन्तु इसमें माता की स्वीकृति की जरूरत पड़ती , पिता बिना माता के स्वीकृति के  कुछ ना करते थे । उनका मानना यह था कि घर के सारे फैसले सावित्री ही करे । खुशी के उस दिन को पूरे परिवार ने बड़े हर्ष और उल्लास से मनाया । अगले दिन अपने दैनिक कार्य में सभी लग गए । रमेश को अब अपने नियुक्ति पत्र का इंतजार था, जो १५ वे दिन आ गया और उन्हें अगले सप्ताह ही स्कूल ज्वाइन करना था । अपने ही स्कूल ,जहां कोई विद्यार्थी रहा हो और स्वयं वहीं अध्यापक बन जाएं  इस से बड़ी खुशी और क्या होगी । रमेश ने अपना कार्य भार संभाल लिया और खुशी- खुशी अपनी सेवाएं देने लगा । समय बीतता गया और तनख्वाह मिलने का दिन आया घर पर सभी काफी खुश और उत्सुक थे यह जानने के लिए की वेतन कितना मिलेगा रमेश को । उत्सुकता ख़तम हुए सबकी जब रमेश के गतिशील यंत्र में सरल मोबाइल सूचना आई जो कि बैंक द्वारा भेजी गई थी,जो यह सुनिश्चित कर रही थी कि रमेश के बैंक वेतन खाते में २५,५००/- की राशि भेजी गई  है । घर वालो के  खुशी का ठिकाना ना था । मां ने कहा बेटा तेरी पहली  तनख्वाह से मैं सत्यनारायण भगवान का कथा करवाना चाहती हूं , रमेश ने बिना संकोच किए हामी भरी, वो पिता की ओर देखने लगा और कहा पिताजी आप के लिए क्या ला दूँ ,मैं चाहता हूं कि आप, मां और छोटे भाई के लिए कुछ कपड़े खरीद दू । मां ने नम आंखो से देखते हुए कहा कि' तू अपने लिए कुछ नहीं लेगा क्या ?' यह सुन रमेश ने कहा, 'अभी तो पिछले दशहरा में अपने लिए नए कपड़े लिए थे, वो काफी है मेरे लिए अभी वे नए है मां '। मां ने कहा पगले तुझे सबकी फ़िक्र है अपने लिए भी कभी सोच ।झांकते चेहरे को देख रमेश बोला तू क्यों मुंह लटकाए बैठा है तुझे कुछ चाहिए तो बता । छोटे भाई ने कहा,'भाई एक बाइक दिला दो मुझे '। यह सुन सारे स्तब्ध रह गए । अभी के समय में बाइक कोई बड़ी बात नहीं है , लेकिन उस परिवार के लिए ये बड़ी बात थी क्योंकि रमेश के पिता एक पुरानी साइकिल चलाते थे , उसी साइकिल से अपने दुकान का सामान बाजार ले जाते  , बस ये समझ लो कि उस साइकिल के सहारे ही उस परिवार की रोजी रोटी चलती थी , और इस साइकिल से उनके पिता के संघर्ष के दिनों की यादें जुड़ी थी । पर हा समय के साथ आगे बढ़ना चाहिए, माता को कोई आपत्ति न हुई । वे कई दिनों से इस इच्छा को दबाए बैठी थी कि उनके घर भी एक दूपहिया  वाहन आए , परन्तु घर की आर्थिक स्थिति सबल न  थी तो बात मन  में ही  रह जाती थी। मां की स्वीकृति मिल गई , उनकी  स्वीकृति के साथ  पिता की भी स्वीकृति  थी । पिता ये कभी नहीं चाहते थे कि उनके पुत्रों को भी साइकिल चलाना पड़े। समस्या यह थी कि इतने कम पैसों में बाइक कैसे ली जाए । इस समस्या का समाधान किया मेरे प्रिय वीरेंद्र सर ने । वीरेंद्र सर भूगोल विभाग के मुख्य थे , और मैं उनका प्रिय छात्र रह चुका था मुश्किल हो जाता है और सारे काम ठप हो जाते है । ऐसे मौसम में बाइक आया कि चलाना तो दूर घर से निकालना मुश्किल हो रखा था । वैसे तो हम दोनों भाईयो को बाइक चलाना आता था , बाइक चलाना हमने बिरजू काका से सीखा था ,  बिरजू काका का मोटरसाइकिल मरम्मत का दुकान है जहा हम कभी कभार बैठ लिया करते थे और उनका छोटा मोटा हिसाब जोड़ दिया करते थे , उन्होंने  हमें सीखा दिया था बाइक चलाना । परन्तु अपनी बाइक कि सवारी का मजा ही कुछ और था । पाच दिन बाद बरसात रुकी हर तरफ पानी और कीचड़ लगा हुआ था , लेकिन मै माननेवाला नहीं था बाइक निकाली और बस चल दिया। काफी देर घूमने के बाद घर वापस आया ,लेकिन लोंग ड्राइव की इच्छा मन में घर कर गई थी और लोंग ड्राइव के लिए मुझे बड़े भइया के साथ ही जाना पड़ता । बड़े भइया के आते ही मैंने उनसे आग्रह की, कि हमें लोग ड्राइव पे ले चलो , बड़ी मिन्नतों के बाद बड़े भइया मान गए । बड़े भइया ने बोला कि हम रविवार को चलेंगे क्युकी उसी दिन उनका अवकाश रहता है । परन्तु जाए कहा , तब मैंने कहा कि हम दार्जिलिंग चलते है ।  सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग ज्यादा दूर नहीं है ,और हमारी योजना बन गई ।


        रविवार का दिन था हम दोनों भाई तैयार हुए  । मां के प्रश्न करने पर मैंने बोला कि हम दोनों भाई लॉन्ग ड्राइव पर जा रहे है दार्जिलिंग और शाम तक लौटेंगे । मां ने घबराते हुए कहा कि ' क्यों  कही पास  से ही  घूम आओ '। माता  का दिल है आखिर  बच्चों के लिए चिंतित हो ही जाती है । मां ने बच्चो के फूल से खिले हुए चेहरे को मुरझाते हुए देखा तो रोकना उचित न समझा ,उनका भय भी जायज थी पहाड़ी रास्ता है, बरसात का मौसम है , रास्ते में कुछ हो ना जाए ये सोच के उन्हें रोकना चाहती थी , लेकिन बच्चे बड़े हो रहे थे कब तक उन्हें रोकती , मां ने हामी भर दी लेकिन उनकी कुछ शर्त थी एक तो यह की जल्दी लौट आना होगा और दूसरा यह कि जाने से पहले माता उनका नजर उतारना चाहती थी । कोई कुछ कहे ना कहे लेकिन माता जानती थी कि भगवान ने उनके परिवार को खुशियां  दे दी है और लोगों की बुरी नजर उनके बच्चो  का अहित कर सकती है इसलिए मां हर वक़्त अपने बच्चो का नजर उतारा करती थी । बच्चो को आदत हो गई थी वे मना नहीं करते थे । मां ने नजर उतारी और दोनों भाई चल दिए अपनी नए बाइक पर सवार होकर दार्जिलिंग की यात्रा पर ।


        यात्रा आरंभ हुई , दोनों भाई पहुंचे दार्जिलिंग मोड़  जहां उन्होंने अपनी बाइक में ईंधन भराई और अग्रसर हो गए मंजिल की ओर ।सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग के रास्ते में पूरे रास्ते डी एच आर ( दार्जिलिंग हिमालयन  रेलवेज़ ) की पटरियां आपके हमसफ़र की तरह रास्ते भर साथ निभाती है, मील  के पत्थर के भाँति  रास्ते और दूरी बताते चली जाती है । वो आड़े तिरछे रास्ते बिल्कुल किसी फुर्तीले सर्प की तरह भागती चली जाती है । दोनों भाईयो ने अपनी पहली पड़ाव डाली सुकना , थोड़ा आराम करते हुए आगे बढ़े तो पहुंचे रोंटोंग, तिंधरिया, गायाबरी, महानदी होते हुए कुर्सियांग, पर्वतीय क्षेत्र है ,हरियाली मानो कोई देव उड्डयन हो, फूल ,पत्ते , पहाड़ और सर्प की भाँति आड़े तिरछे रास्ते जो सफर को सुहाना बनाते जा रहे थे । हमने अपना अगला पड़ाव डाला  कुर्सियांग में जहां हमने दार्जिलिंग की मशहूर चाय पी और मोमोज खाएं यहां के मोमोज बड़े ही मशहूर है, मुंह में डालते ही पिघल जाते है बड़ा ही लाजवाब लगते है । भोजन कर हम आगे बढ़े धीमी - धीमी बारिश होने लगी और रास्ता भी ऐसा था कि एक तरफ पर्वत तो दूसरी तरफ तीस्ता नदी । पर्वतीय क्षेत्र में बरसात के दिनों में बड़ी दुर्घटनाएं होती है डर तो लगता था ,लेकिन एक जोश और उमंग थी  अपने अंदर जिसके हवा भरने पर अपनी गाड़ी आगे बढ़ती चली जा रही थी । अचानक ही  सुनसान रास्ते पर एक लड़की सामने आ खड़ी हुई , उसने हमें रुकने का इशारा किया , एक अलग और अलौकिक तेज थी उस बची के चेहरे पे , उसके पास पहुंच के हम रुके , बच्ची ने कहा भइया कुछ पैसे दे दो सुबह से कुछ खाई नहीं हूं । सुन सान स्थान था और यहां किसी बच्ची का होना आश्चर्य चकित कर रहा था, हमने ज्यादा सोचे बिना उसे २० रुपए दे दिए और आगे बढ़ गए ,हम वहां लगभग २०-३० सेकंड्स के लिए रुके थे और उस लड़की को पैसे देकर आगे बढ़ गए । आगे बढ़ कर कुछ दूर ही गए थे कि अचानक से कुछ ही दूरी पर एक बड़ा सा चट्टान खिसक कर रास्ते पर आ गिरी, हमारे आगे तो कोई ना था मगर पीछे कुछ और बाइक तथा गाड़ी वाले थे जो रविवार के अवकाश का आनंद लेने पहाड़ों की रानी दार्जिलिंग जा रहे थे । चट्टान गिरता देख भइया ने जोर की ब्रेक लगाई जिसके कारण हम बाइक से गिर पड़े । यकीन मानो हम से कुछ ही दूर आगे चट्टान गिरी थी और इस घटना के साक्षी बन गए थे हम, मानो महादेव ने हमारी जान बचा ली हो, हम गिरे पड़े हुए थे और  देवी देवताओं को कोटी कोटि नमन कर रहे थे ,कुछ छन के लिए तो हमारी सांसें रुक गई ,सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो गए थे । इतने में हमारे पीछे कुछ लोग आए जिन्होंने हमें सहारा देकर उठाया , हम उठ कर रास्ते के साइड में बैठे ,पानी पिया और लंबी सांसे ली । इतने में किसी ने कहा कि रास्ता बंद हो गया है और कब खुले पता नहीं और यहाँ रुकना ठीक नहीं ,पता नहीं कब कोई दूसरी चट्टान गिर जाए । हमने वहां से वापस निकलना मुनासिब समझा और अपनी बाइक उठाई , बाइक रुकी हुए अवस्था में गिरी थी ,तो किसी प्रकार की खराबी नहीं हुई । हमने लंबी सांस लेते हुए बाइक पीछे मोड़ी और वापस घर की ओर चल दिए । बस आगे बढ़े ही थे कि हमारी नजर उस २० रुपए की नोट पर पड़ी, जो हमने उस लड़की को दी थी जिसने हमसे कुछ खाने के लिए मांगा था । परन्तु आश्चर्य यह था कि वो नोट जमीन पर पड़ी थी। मैं उस नोट को पहचान गया क्योकि वो बिल्कुल नई थी जो मुझे मोमोज के दुकान वाले गोरखा अंकल ने दी थी । नोट उठाते हुए मैंने उस लड़की को ढूंढा वो कहीं नहीं दिखी । मैं आगे बढ़ गया सोचा वो कहीं रास्ते में दिख जाए तो उसे लौटा दूंगा । आते वक़्त तो हम अकेले थे ,लेकिन लौटते वक़्त अब हम चार बाइक वाले हो गए थे जो सिलीगुड़ी से आए थे और अपनी यात्रा की नाकामी और बड़ी दुर्घटना के टलने के बाद घर लौट रहे थे । कुछ दूर निकलने के बाद हम उस दुकान के पास रुके जहां हमने मोमोज खाएं थे ,हमें देख बाकी बाइक वाले भी रुक गए और हमने सबके लिए चाय ऑर्डर की । जब तक चाय आता हम उस घटना के बारे में बात करने लगे जिसका साक्षी हम दुर्भाग्य वस बन गए थे । बातो ही बातो में मुझे याद आया कि वो लड़की हमें कहीं नहीं दिखी जिसे हमने २० रुपए दिए थे । मैंने सोचा कि सह यात्रियों से पूछूं सायद उन्होंने देखा हो उसे । उनसे पूछने पे पता चला कि उन्होंने ऐसी कोई लड़की नहीं देखी रास्ते में, हा मगर उन्हें एक बूढ़ी औरत मिली थी जिसने उन्हें रोका और कुछ खाने के लिए मांगा । उन यात्रियों के पास कुछ केक थे जो उन्होंने उस वृद्ध महिला को दे दिया और आगे बढ़ गए । कुछ दूर चले ही थे कि यह घटना घटित हो गई । इतना सुनते ही रमेश के होश उड़ गए , और उसे कुछ दैविक घटना होने का आभास हुआ । रमेश इतना बेवकूफ न था कि इन दोनों घटना क्रमो को ना जोड़ सके । रमेश के चेहरे से पसीना बहने लगा , वो लाल हो चुका था उसके समझ में जो आ रहा था वो सभी यात्रियों के होश उड़ा देने वाला था । रमेश उठ खरा हुआ और अपने सह यात्री को उस लड़की की बात बताई जिसने रमेश से पैसे मांगे थे, वो लड़की दुबारा नहीं दिखी नाही वो वृद्ध औरत ।  अगर उन्हें पैसे की जरूरत थी तो वो पैसे रास्ते में छोड़ कहा चली गई । रास्ता दो तरफ का था तीसरी ओर पहाड़ और चौथी ओर गहरी तीस्ता नदी, आखिर वो गई कहां ? एक तरफ भूस्खलन वाली चट्टान एवं दूसरी तरफ हम और दूसरे यात्री वो लड़की किसी को ना दिखी । यह घटना बड़ा ही अद्भुत था । यदि हम उसे पैसे देने ना रुकते तो शायद हम उस चट्टान के नीचे होते और यम के दरबार में हमारा हिसाब हो रहा होता । बिल्कुल ऐसी ही घटना सह यात्रियों के साथ घटी जिस वृद्ध महिला को उन्होंने केक दिया था वो दुबारा न दिखी । यह बिल्कुल ही अद्भुत घटना थी जिसे सुनते ही हम सब स्तब्ध हो गए , हमारी आंखे खुली की खुली रह गई । हमने हिम्मत जुटा के दुकानदार गोरखा अंकल से इस घटना कि चर्चा की तो हमे कुछ ऐसा पता चला जिसने हमारी पैरो तले जमीन ही खींच ली । गोरखा अंकल ने बताया इस रास्ते में अक्सर एक लड़की, या वृद्ध औरत लोगो को दिखती  है । ये कोई और नहीं पास वाले गाव के थे । इनकी मृत्यु हो चुकी है । इनकी मृत्यु भूस्खलन से ही हुई थी  कई वर्षो  पहले । ये दोनों मां और पुत्री है । ये पवित्र आत्मा है और अक्सर लोगों को दिखती है । ये यात्रियों की सहायता करती है । जैसे आपकी जान बचाई वैसे इन्होंने कई और लोगो की जान बचाई है । आप बड़े भाग्यशाली है जो ये आपको दिख गए । ये सुनते ही सभी यात्रियों के रोंगटे खड़े  हो गए और उनकी बंदना में हाथ जुड़ गए । चाय पीकर सभी नीचे सिलीगुड़ी की तरफ चल पड़े । उनके मन से ये घटना निकल नहीं पा रही थी । रमेश रास्ते भर सोचता रहा उस घटना के  बारे में फिर उसे याद आया मां का वो नजर उतारना , वो पूजा पाठ , वो सत्कर्म । इन्हीं सब पर मां को भरोसा था कि हम पर कोई मुसीबत नहीं आएगी और मात- पिता का किया बच्चों के आगे आता है । चाहे जो भी हो पर इस घटना ने दोनों भाईयो के मन में भगवान और दैविक शक्तियों के प्रति आस्था जगा दी । दोनों भाईयो ने प्रण ली कि ये घटना वे घर पर नहीं बताएंगे और सबके सामने सामान्य रहेंगे ।


        दोनों भाई जीवन भर अपने माता -पिता के आशीर्वाद से और अपने सत्कर्म से फलते फूलते रहे । लेकिन ये घटना कभी भूल नहीं पाए । काफी समय बीत चुकी थी और एक दिन वे अपने माता ,पिता और बच्चो के साथ दार्जिलिंग की यात्रा पर निकले । मानो वो यादे ताजा हो गई हो । वे उसी गोरखा  अंकल के दुकान पर रुके जहां उन्होंने अपनी प्रथम यात्रा के दौरान चाय और मोमोज खाई थी , सभी ने मुंह हाथ धो कर चाय नाश्ता किया और यात्रा में आगे बढ़ गए दार्जिलिंग की ओर । जब उस स्थान से गुजरे जहां वो घटना घटित हुई थी उनकी सांसे तेज हो गई, रोंगटे खड़े हो गए । दोनों भाईयो ने हाथ जोड़ा और उस बालिका और बृद्ध महिला को नमन करते हुए धन्यवाद् अर्पण किया । प्रथम यात्रा तो अधूरी रह गई,परन्तु द्वितीय यात्रा सफल हुई और वो दूसरी कहानी बनी , जो मै अगले कहानी में सुनाऊंगा ।

       

धन्यवाद्।।