मेरे गाँव में एक
पुरानी बावड़ी के निकट
खड़ा हुआ है
लंबा- ऊँचा-सा
एक बूढ़ा पीपल !
लोगों से सुनते आए हैं
भूत रहता है
पीपल के पेड़ में !
जाता नहीं
रात में अकेले
उसके नीचे
एक भी जन !
जबकि सही यह है कि
वह देता है हमें
भरपूर आक्सीजन !
हमारी सं स्कृति में
बहुत मान्यता है
अश्वत्थ की !
पुण्य-वृक्ष मानकर
होता है इसका पूजन !
पीपल के पत्ते
रात के सन्नाटे में
हिलते हैं ।
खड़-खड़ करते हुए
उछलते हैं ।
करते हैं उल्लास और
उमंग की अभिव्यक्ति !
सूखते जाते हैं यह बताने को ,
कर रहे हैं हम पुराने पत्ते
नये पत्तों का स्वागत !
बूढ़े दादा का
दुलार है यह
जोर-शोर से !
जैसे अभयदान
देता हुआ
कह रहा हो पीपल,
में हूँ ना संरक्षक
तुम्हारा !
नवल -परंपराओं का
आगाज़ करनेवाला,
हमें दुलराने वाला
सांस्कृतिक वृक्ष है
पीपल !
सचमुच बहुत प्यारा
लगता है मुझे बहुत प्यारा
दादा जी जैसा
वह बूढ़ा पीपल !
आओ, हम अंधविश्वास
और भ्रांतियों को तिलांजलि दें
हाथ में ले ,
छोड़कर जल !!