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कविता: एक जोड़ी जूता (सबनम भुजेल, ऊपर चेंगमारी नेपाली लाइन, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सबनम भुजेल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “एक जोड़ी जूता":


बचपन से उसमें सेप्टीपीन लगाए हुए
दोस्तों के पीछे भागते हुए देखा
झूठ बोलने की सजा में
माँ के हाथों का हथियार बनते हुए देखा
काँटों भरी राह पर
साथ-साथ चलते हुए देखा
कीचड़ और गड्ढे को पार करते हुए देखा,
देखा उसे मोची का पेशा बनते हुए
तपती धूप और भारी बरसात से लड़ते हुए
देखा सड़क की चकाचौंध में झूमते हुए।
पर अफ़सोस,
उसे नहीं देखा-
स्टेशनों पर कटोरा लेकर खड़े नन्हें नंगे पैरों पर,
नहीं देखा
किसी झोपड़ी के बाहर आँगन पर
नहीं देखा
किसी खुरदुरे और गिट्टियों में तपते हुए पैरों पर
उसे तो बस
शॉपिंग मॉल में लगे पुतलों पर टंगते हुए देखा।
उसी के आगे-पीछे झूमते हुए देखा।