पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सीमा गर्ग मंजरी की एक लघुकथा जिसका शीर्षक है “गिद्ध":
शीला के पति का देहान्त
हुए सात महीने हो गए थे ।
अब तक पतियों के
दबाब में चुपचाप रीति नीति निभाने वाली बहू के स्वर अब मुखर हो चले थे ।
माँ बड़े बहू
बेटे के साथ गाँव में रहती थी । छोटे बेटे बहू शहर में रहते थे ।
वह कभी-कभार माँ
से मिलने एक दो दिन के लिए गाँव आ जाते थे ।
"सुनो! बात
की थी तुमने माँ से,!
बडी बहूरानी ने
माँ के कमरे में से निकलते अपने पति को टोका।
"क्यों तुम
क्यों मुँह धोये बैठी हो उनके पैसों पर !
अरे ! मैं ऐसा
नहीं कह रही । कभी अपने इस दिमाग पर भी जोर डाला करो ।
"किस चीज की
कमी है जो तुम माँ के जेवर गहने रूपये पैसे पर अपना हक जताना चाहती हो ।"
बडे बेटे ने
पत्नी को आँखें तरेरकर देखते हुये कहा ।
"पता नहीं
तुम कब समझोगे?
"तुम तो
मिट्टी के माधो ही रहोगे ।"
और कान के पास
मुँह लाकर रहस्यमयी आवाज में फुसफुसायी ।
"अगर आज हम
माँ जी से जेवर गहनों पर अधिकार नहीं जतायेंगे तो छोटे देवर सब कुछ ले कर चले
जायेंगे ।
" ओ हो, अब अम्मा जी का जीवन और कितने दिन का है ।"
आज मरेंगी कल
दूसरा दिन !
अब वो बुढापे में
क्या करेंगी जडाऊँ गहनों का ।"
"हमें मिल
जाएंगे तो मेरे पहनने के काम आयेंगे । "
"बाद में
गुड्डी बबलू की शादी के काम में आयेंगे ।"
उसकी पत्नी की
लालची आँखों में माँ की गहनों से भरी पोटली घूमने लगी ।
बड़े बेटे की
निगाहों में माँ की झुर्रीदार बुढाती सूरत उभर आई ।
कुछ देर बाद
सोचकर बोला कि
"तुम सही
कहती हो ।"
"अब माँ के
जीवन का कोई भरोसा नहीं है । उनकी आँखे बंद करने से पहले ही हमें सब कुछ अपने नाम
करा लेना चाहिए । "
दरवाज़े के पीछे
खड़ी माँ अपने बेटे बहू की सूरत में अपनी मौत की प्रतिक्षा करते उन गिद्धों को
देखकर ठगी सी खडी रह गयी ।