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कविता: अखबार (पुनीत गोयल, पटियाला, पंजाब)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार पुनीत गोयल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “अखबार”:

 
सब लिखती है‌ मेरी स्याही
कभी झूठ कभी सच्चाई
सब पढ़ते है मुझे दिल से
मैंने प्रीत ही है ऐसी लगाई,
घर घर जाता हूं,
जैसे हर घर की शोभा मैंने है बढ़ाई,
कोई रख लेता है संभाल कर,
किसी ने कैंची है चलाईं,
बहुत से काम कर देता हूं,
कभी तो मैंने आग भी जलाई,
झूठ लिखती हैं जब मेरी स्याही,
रोता हूं जब लिखी नहीं जाती सच्चाई,
चाहता तो मैं भी नहीं हूं कि उड़ेली जाए मुझ पर झूठ की स्याही,
मगर दुनिया में सच नहीं झूठ है बिकता,
लोगों को अब तक कुछ भी समझ नहीं आई,
तड़प रहा हूं कि लिखे कोई पूर्ण सच्चाई,
मगर सच से घबराता है हर कोई,
महसूस हुआ दर्द आज पुनीत को बहुत,
जब एक अखबार ने अपनी दास्तां सुनाई।