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कविता: दो लाल फूल (संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया, भोपाल, मध्यप्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया की एक कविता  जिसका शीर्षक है “दो लाल फूल”:

आज मैंने दो ।
लाल सुंदर ।
हंसते खिलखिलाते ।
गर्वित हर्षित फूल तोङे ।
 
तोड़ने से पूर्व ।
मुझे अनुभूति हुई ।
मानो दोनों फूल ।
मुझसे कह रहे हो ।
 
हमें मत तोड़ो ।
हमें अपने वंश से पृथक।
मत करो ।
हमारे पालक हमारी ।
 
जुदाई और हम उनकी ।
विरक्ति सह नहीं पाएंगे ।
हम निवेदन करते हैं ।
हमें अपने पालक से जुड़े ।
रहने दो ।
 
वैसे भी हमारी आयु ।
अल्प होती है ।
उस अल्प आयु तक ।
हमें पालक से जुड़े ।
रहने दो ।
 
हम दोनों लाल फूल ।
करबद्ध निवेदन करते हैं ।
आपसे हमें मत तोड़ो ।
हमें अपने वंश से जुड़े ।
रहने दो ।
हमें अपने माता-पिता से ।
पृथक मत करो ।