पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार ऋषि कुमार दीक्षित की एक कविता जिसका
शीर्षक है “मां की भाषा”:
हिंद की देवनागरी लिपि भारती,
संस्कृत मूल शारदा की जननी,
मातृभाषा अनेकों राष्ट्र जन की,
प्राण सम राजभाषा भारत की।
विस्तृत रूप सरल परिभाषा,
अति शीघ्र समझने की भाषा,
सुमधुर कोमल मन की भाषा,
निश्चित उद्देश्य, संपर्क भाषा।
जन्म से ग्रहण किया जो तुमको,
पाया अद्वितीय ज्ञान वह तुम हो,
निरंतर बढ़ने की प्रक्रिया तुम जो
सत्य दर्शन जो कराए वह तुम हो।
भाषा अपनी रसों का सागर,
आदर्श प्रेम एकता महासागर,
संपूर्ण जानकारी का है सागर,
हिंदी जैसे ज्ञान गागर में सागर।
आओ सब मिल एक हो जाएं,
धरोहर को तन मन से अपनाएं,
विश्व पटल विजय कर दिखलाएं,
भाषा हिंदी से जुड़ सम्मान दिलाएं।
सत्य दर्शन जो कराए वह तुम हो।


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