पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार रीमा सिंह की एक कविता जिसका
शीर्षक है “हमारी मातृ भाषा हिन्दी”:
हिन्दी अपनी हिन्दुस्तान अपना,
हिन्दी भारत माँ का गहना।
आभूषण रहित ना करो मांँ को,
मातृभाषा ही भाए भारत माँ को।
संस्कृत से है अपनी संस्कृति,
हिन्दी से है अपनी सभ्यता।
क्यूँ करें हम हिन्दी से दूरी,
भारत ही जब मुझको भाता।
हिन्द में ही मनती होली ,
हिन्द में मनती दिवाली ।
हिन्दी में ही चिड़ियाँ ची ची,
गाए कोयलिया काली काली।
जय गण मण अपना हिन्दी में,
सत्य मेव जयते भी हिन्दी में।
भारत माँ की जय हिन्दी में,
जय जवान जय किसान हिन्दी में।
हिन्द अकेला रहे ना अपना,
जोडो़ इसके साथ में हिन्दी।
हिन्दी पर अभिमान मुझे,
इसपर करती मैं गुमान,
मिठी सबसे बोली लगती,
बसती इसी में जान।
मंदिर की टनटन में हिन्दी,
नदियों की कल-कल में हिन्दी।
मोर पपिहा और तीतर,
सबकी बोली में है हिन्दी।
हिन्दी का ही दिन अपना,
हिन्दी का ही महीना।
हिन्द और हिन्दी से प्यारा,
भाये कुछ भी कहीं ना ।।
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