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कविता: गाँव की मिट्टी (कविता शर्मा, गंगटोक, पूर्व सिक्किम)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कविता शर्मा की एक कविता  जिसका शीर्षक है “गाँव की मिट्टी”:
 
 
गाँव की मिट्टी
 
न जाने कौन से शहर में रहते हो
न तुम्हारा पता है और न ही ठिकाना ।
फिर भी तुम्हें पत्र लिख रहा हूँ,
तुम्हें गांव की गली बुलाती है,
खेतों की मिट्टी तुम्हारे स्पर्श के लिए तड़पती है
और हमारी आंखें चारों दिशा तुम्हें ही ढूंढा करती है।
न जाने कौन से शहर में रहते हो
क्या तुम्हें इतनी मसरूफियत है कि
अपने अतीत के पन्ने तक पलट नहीं पाते।
क्या तुम्हें अपने घर के आंगन और खेत याद नहीं आते?
हमें तो सब कुछ याद है ।
बचपन में तुम्हें
कैसे झूले से गिरकर चोट लगी थी
और पूरा गांव तुम्हें देखने आया था,
फिर अंत में मेरे हाथ की मिठाई से तुम शांत हुए थे ।
क्या तुम आज इतने बड़े बन गए जो
अपने बूढ़े मां बाप तक याद नहीं।
कैसे तुम्हारी मां पत्थर तोड़ तोड़कर
तुम्हें पढ़ाने के लिए रकम इकट्ठा करती थी।
आज भी याद है तुम्हारी वो वादे
आपके बुढ़ापे की लाठी बनूंगा।
अंधेरे में आंखों की रोशनी बनूंगा ।
लेकिन हर वादे तुमने तोड़ डाले ।
तुम्हारी मां हर आने जाने वाले को
तुम्हारे नाम से पुकारा करती है,
बेचारी यह नहीं जानती
शौहरत और पैसों की भागदौड़ में
तुम अपने मां बाप का सौदा कर चुके हो
न जाने कौन से शहर में रहते हो
न तुम्हारा पता है और न ही ठिकाना।    

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