रजत- प्रधानता है बेस- आभरण माँही,
स्वर्ण भी दिपत रह्यो, कहनी क्या बात है ।
पुहुपों के भाग देखो, छनिक है जीवन पै,
प्रभु जी के तन पर खिले मुसकात है ।
अनुराग जीवन को एकमेव मूल तत्व,
पिछवाई यो संदेश कहि बतरात है ।
ऐसी ही विमोहक-सी चितवन नंदलाल,
डारते ही रहियो, अनंद सरसात है। ।
तन मेरो वृंदावन, मन निधिवन बन्यो ,
प्रेम के सघन कुँज आइकै खिलाइए,
हिरदै में बस रह्यो आपको युगल रूप ,
नित्य लीलालीन आप रास को रचाइए ।
प्रेम के पुनीत सर,करुना को जल बहा,
कालिन्दी-कदम्ब कूल प्रिय अन्हवाइए।
पीतपटधारी मेरी अरदास इती-सी है ,
रसना पै प्यारै नाम-रूप बस जाइए।।