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कृष्णभक्ति के छन्द (घनाक्षरी कवित्त) :: रविकान्त सनाढ्य, भीलवाड़ा, राजस्थान




रजत- प्रधानता है बेस- आभरण माँही,
स्वर्ण भी दिपत रह्यो, कहनी क्या बात है ।
पुहुपों के भाग देखो, छनिक है जीवन पै, 
प्रभु जी के तन पर खिले मुसकात है ।
अनुराग जीवन को एकमेव मूल तत्व, 
पिछवाई यो संदेश कहि बतरात है ।
ऐसी ही विमोहक-सी चितवन नंदलाल, 
डारते ही रहियो, अनंद सरसात है। ।


तन मेरो वृंदावन, मन निधिवन बन्यो , 
प्रेम के सघन कुँज आइकै खिलाइए, 
 हिरदै में बस रह्यो आपको युगल रूप , 
नित्य लीलालीन आप रास को रचाइए ।
प्रेम के पुनीत सर,करुना को जल बहा, 
कालिन्दी-कदम्ब  कूल  प्रिय अन्हवाइए।
पीतपटधारी मेरी अरदास इती-सी है , 
रसना पै प्यारै  नाम-रूप  बस जाइए।।


लाल-लाल ललित-ललाम वेसधारी  श्रीजी, 
उर में बिसाल माल अतिअभिराम है ।
नीको है मुकुट लाल , नीलमों से जड़्यो हुओ, 
मोरपखा वारो मेरो प्यारो घनश्याम है ।
हीरे की ठसक देखो, चाँदी की चमक खूब ,
गोप -गोपी सखा यह, सुषमा को धाम है ।
राजराज तीन लोक-लोकन को अधिपति, 
सबको है सिरमौर याको बड़ो नाम है।।