पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार निशा ठाकुर की एक कविता जिसका शीर्षक है “इश्क":
हमने भी इश्क किया हैं
हमे भी मोहब्बत हुई है
इश्क की परिभाषा अगर
किसी को शिद्दत से चाहना है
हर कीमत पर किसी को पाना है
दिन रात बस उसी के खयालों में
बेसुध डूबते जाना है
तो जी जनाब ............
हमने भी मोहब्बत की है !
अपने सपनों से,
अपनी मंजिल से,
अपनी उड़ान से,
अपनी आजादी से।
जी हा हमे भी मोहब्बत हुई है !!
सुना है ईश्क में
नींद नहीं आती, भूख
नहीं लगते,
समाज में बदनामीया और
परिवार से ताने है पड़ते
तो हुजूर.......
हम भी क्या कम बदनाम है??
समाज से धितकरी गई हूं,
परिवार से नकारी गई हू
जी हा अपनी ईश्क के खातिर
सपनों की चौकट पर,लसारी
गई हू!!
अगर इश्क करना एक गुनाह है
अगर इश्क करना एक गुनाह
कलंक है, एक अपराध है
तो,हा मै दोषी हूं, हा मै अपराधी हूं
क्योंकि,,,,,,
मैंने उस देहलीज को लांगा है
मैंने अपनी हक को मांगा है
जहां कैद कई रमणीयो(स्त्री) को
पाबंदी कि डोर ने बांधा हैं
हर मोड़ पर मुझसे इम्तेहान लिया गया
हर नजरिए से मुझे परखा गया
पिता को बिटिया सयानी तो दिखी
पर उसकी पसंद को अस्वीकारा गया
अगर इश्क त्याग का दूसरा नाम है
तो मैंने भी खोया है
अपने सपने,अपनी उड़ान
अपना अस्तित्व ,अपनी
पहचान
बंधी जारही हूं उस खुटे से
जहा जीवन होगा, पर
जिंदगी नहीं
मुस्कुराहट तो होगी, पर खुशी नहीं
इश्क में अक्सर ऐसा ही हुआ है
यहां रिवाजों के नाम पर मिली बद्दुआ है
मुक्कमल नहीं हुए हीर रांझे भी
बदनाम कर उन्हें भी दीवारों में चुनवाया है
सुन के ताज़्जुब हुआ होगा है ना
ये अयना है
हमारे समाज का
हमारे व्यक्तित्व का
हमारी मानसिकता का
उस कुरीति कुरीवाज का
जिसके आड़ में हर रोज
हर वक़्त,हर मोड़ पर
नजाने कई ऐसी प्रेमिकाएं
रुलाई जाती हैं, शताई
जाती है
कमबख्त इस इश्क की लत से
हर दीवानी का ये अंजाम हुआ
जमाने ने ना समझा इश्क़
बस बदनाम सारेआम हुआ