अपलक ही निहारतो मैं रह्यो प्रभु रूपतेरो,
नीलमणि घनश्याम तेरी बड़ी शान है ।
अपरूप छवि तेरी सेवनीय है परम,
पड़ी मेरे नैनन को तेरी बड़ी बान है ।
सुंदर- बिसाल पुष्पमाल रंगरंगीली है,
नई शैली पगड़ी की मुझे अभिमान है ।
सज्यो- धज्यो ब्रजराज आज ऐसो ओप रह्यो,
ऐसो लगै कान्ह बरसानै मेहमान है ।।
सुषमा अनंत खिल रही मेरे नंदलाल ,
पुलक - प्रसन्नता के आप तो निधान है ।
जगत का कालचक्र आपके अधीन सब,
आपकी कृपालुता भी अतिव महान है ।
दुनिया-जहान के हैं आप ही तो माई-बाप,
सब ओर चल रह्यो आपको विधान है ।
कहै रविकंत वह मानुस कृतारथ है ,
आपकी मेहर से जो नहीं अनजान है ।।
आपके अनंद की तो बान ही निराली प्रभु,
आपका तो नाम सत् चित् औ अनंद है ।
अह-निस प्रेम में मगन रहते हो आप,
मुखड़े की मुसकान आपकी अमंद है
मथुरा के अधिपति , द्वारिका के धीश आप,
तीन लोक के हैं नाथ अरु ब्रजचंद हैं ।
आपकी ही सरनाई, आपकी ही निशरा में ,
मस्त हुयो रविकंत दंद है ना फंद है ।।





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