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कविता: मैं मजदूर हूं (दीपंकर पाठक, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार दीपंकर पाठक की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मैं मजदूर हूं:


मजदूर हा हा हा....
मजबुर
तुम रोज कमाने खाने वाले
दाना बिन बिन लाने वाले
उत्तर से दक्षिण त्रस्त हो
पूरब से पश्चिम पस्त हो
दो जून की रोटी को
निकले थे तुम रोजी को
सुन एक है देश
पर पाया
टुकड़ों टुकड़ों में बटा वेश
हर राज्य ने दुत्कारा है
मजदूर हो तुमने क्या पाया है?
धनिया के निनिया खाएं
दिन रात बिंदिया कि चिंता सताए।
किसी भांति सुरक्षित हो
पी घर वापस आए।
इस मन्नत देवी मां के चोरा जराए
ओ मजदूर, नहीं नहीं मजबुर
क्या खोए क्या पाए
?

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