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ग़ज़ल: ओ, मेरे सनम (कमल भंसाली, कोलकाता, पश्चिम बंगाल)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कमल भंसाली की एक ग़ज़ल  जिसका शीर्षक है “, मेरे सनम:

मेरे सनम, तुम्हीं से की मौहब्बत, तुम्हें ही दिल दिया
कभी इनकार, कभी इकरार, सदा अंदाजे दर्द ही पीया
 
न जाना हाल हमारा, दिल को सदा घायल ही किया
बेवफा कहके, बदनामी का बदगुमां तोहफा ही दिया
 
कभी न भूले सनम, दस्तूर मोहब्बत ही सब निभाती
बेपरवाह प्यार किया है, तो इल्जामों की क्या हस्ती ?
 
इंतहा मौहब्बत की होती, तो दिल की मायूसी बढ़ती
बेचैनियों को थोड़ी जगह, नाजुक दिल मे मिल जाती
 
भूल गए हम, जिंदगी में देखा था, कोई हसीन ख्बाब
तजरुबा हसरतों पर मेहरबान, तभी तो हुए इतने बेताब
 
ख़्वाईसे दिल की भी वक्त के अनुसार बदलती रहती
कभी जिंदगी, तन्हाई में भी प्यार की सरजमी ढूंढती
 
दिलवर थे, तुम्हें कभी, भूल जाये, अगर दिल ये नादां
तो कभी कोई जख्म याद न करेंगे, करते तुम से वादा
 
तकब्बुर तुम्हारा तुम्हें मुबारक, करते दुआ ए खैर
मौहताज न हो, तेरी जिंदगी, कभी बिना कोई यार
 
जश्न हजार मनाओं पर बेजान मंजिलों पर न इतराओ
वक्त के बदलते रवैये को, जरा जिंदगी को भी समझाओ
 
आज की हंसी पर, जरा गंभीरता की चादर चढ़ाओ
गम का सफर शुरु हो, उस से पहले जरा संभल जाओ
 
फूल हो या कांटे , रुहानी स्पर्श को दोनों ही तरसते
बदलते जमाने में, मौहब्बत के रंग भी फीके पड़ते
 
सदा किसी का कोई हों, गये वक्त की दास्तां ही लगती
जीना जरुरी दिलवर,  दिल को भी हार मंजूर नहीं होती

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