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ग़ज़ल: खुद ही बहाते आए हैं (कल्पना गुप्ता "रतन", जम्मू एंड कश्मीर)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कल्पना गुप्ता "रतन" की एक ग़ज़ल  जिसका शीर्षक है “खुद ही बहाते आए हैं":

अपने ,गमों पे, आंसू, खुद ही, बहाते आए हैं
दिल, का दर्द, अपने अंदर खुद, छुपाते، आए हैं।
 
घुट घुट ,रहे हैं जी, मंजर ،यह، ग़मों के साए, का
कब से, हमें वह, छोड़ तन्हा, रुलाते आए हैं।
 
यूं ،बेरुखी की، वजह क्यों, जानना، चाहते हो तुम
उनके، इश्क में डूब, क्या-क्या न، सहते आए हैं।
 
आए، मइत में जो, हमें، फूल वह चढ़ाने
प्याला ،लहू का वह، हमको, पिलाते आए हैं।
 
मिला, चैन ना, हमको, अभी तक, मर भी गए
सुनकर ,गमों की ,दास्तान उनकी, तड़पते आए हैं।

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