पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार कल्पना गुप्ता "रतन" की एक ग़ज़ल जिसका शीर्षक है “खुद ही बहाते आए हैं":
अपने ,गमों पे, आंसू, खुद ही, बहाते आए हैं
दिल, का दर्द, अपने अंदर खुद, छुपाते، आए हैं।
कब से, हमें वह, छोड़ तन्हा, रुलाते आए हैं।
उनके، इश्क में डूब, क्या-क्या न، सहते आए हैं।
प्याला ،लहू का वह، हमको, पिलाते आए हैं।
सुनकर ,गमों की ,दास्तान उनकी, तड़पते आए हैं।


0 Comments