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कविता: विसर्जन (सीमा गर्ग मंजरी, मेरठ, उत्तर प्रदेश)

 


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सीमा गर्ग मंजरी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “विसर्जन":
 
प्रभु मेरे जीवन को कुंदन बना दो,
कोई खोट मुझमें रहने न पाये!
तपूँ कर्मों की खेती में निशदिन ,
अवगुणों का होता रहे विसर्जन!
ज्ञान ज्योति से गुण भाव अर्जन,
अकारथ कर्मो में बीते ना जीवन!
मेरा मानुष जन्म सफल हो जाये,
हीराजन्म मन मूरख ना व्यर्थ गँवाये!
आसक्त तृषा का विसर्जन हो जाये!!
 
नश्वर तन को मैंने समझा अपना,
आँख खुली तो देखा जग सपना!
माया महाठगिनी लुभाती है मुझको,
जगत कीच में नित रीझाती है मुझको!
कलह क्लेश घृणा बैर द्वेष दम्भ कपट,
की विषम ज्वाला चित्त जलाने न पाये!
बहे आनंद पिपासु नेह धारा चित्त में चेतना,
अन्तर्मन में प्रेम धारा प्रस्फुटन हो जाये!
गजानन अलबेली कृपा रस बरसाये,
हीराजन्म मन मूरख ना व्यर्थ गँवाये!!
 
क्रोध लोभ मोह लिप्सा का विसर्जन,
शुचिता दया प्रेम करूणा नित समर्पण!
अन्तस पथ में प्रज्ञा आलोकित दर्पण,
मेरा जीवन सदा चरणों में तेरे अर्पण !
ये नश्वर जगत अब लुभाये ना मुझको,
ज्ञान चक्षु खुले,मिले प्रकाश मुझको!
कटे कर्म फाँस की बेड़ी,विज्ञानी बना दो,
निष्काम जीवन परसेवा हित बीत जाए!
हीराजन्म मन मूरख ना व्यर्थ गँवाये,
भव पीर भटकन का विसर्जन हो जाये !!