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कविता: माता-पिता का सहारा (प्रियंका पांडेय त्रिपाठी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश)

 


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रियंका पांडेय त्रिपाठी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “माता-पिता का सहारा":

पिता कहता है बेटी तो पराई होती है।

मां कहती है बेटी तो चिरैया होती है।

जो उड़ जायेगी फुर्र से परदेश मे।

 

बेटा होता है अपना,बनता है सहारा।

पर कलयुग ने अजब खेल है रच डाला।

बेटे भी फुर्र से सात समुंदर उड़ जाते है।

तभी तो काले कौवे नजर नही आते है।

 

माता-पिता पड़े है विराने से घर मे।

क्या बनेगा कोई उनका सहारा।

आखों से आंसू बहे है टप-टप के।

मैया देखे हैं फोटो बच्चों के रह-रह के।

 

तभी फोन की घंटी बजती है।

बेटी बोलती है पापा मैं आरही हूं।

मै बनूंगी आपका सहारा।

न छोड़ूंगी दामन दुबारा।

 

मैं आपकी बेटी हूं न हूं चिरैया।

मेरे प्यार का कोई मोल नहीं है।

मां बाप का हाल देखकर...

बेटी खूब रोई।

भगवान से बोली...

मोहे अगले जन्म बिटिया ही बनइओ।