Welcome to the Official Web Portal of Lakshyavedh Group of Firms

कृष्णभक्ति के छन्द (घनाक्षरी कवित्त) :: रविकान्त सनाढ्य, भीलवाड़ा, राजस्थान

 



नीले- नीले वसन में आप छविमान प्रभु,
आपकी महानता को मेरा परनाम है l
घर में ही बैठे-बैठे, गुनगान करूँ मैं तो, 
आपकी ये छवि मेरे लिए चारधाम है l
बालपन युहीं बीत्यो,युवानी भी ठहरी ना,
अब तू सुधार मेरे जीवन की शाम है l
तू है दीन-प्रतिपाल, फँस्यो मैं जगत्-जाल,
 मोही तू उबार अब काहे हुओ वाम है ??


गजानन को स्वरूप श्रीजी धरि सोह रहे , 
मौज चढ़ी आपको भी गजब दुहाई है।
करिवर- वदन है, सोभा के सदन आप,
सूंड को घुमाव मोह रह्यो सुखदाई है ।
केसरी है पाग,देखि उपजत अनुराग , 
तिलक की सोभा  भव्य- भाल अधिकाई है ।
कलेवर स्याम अभिराम ओप रह्यो खूब, 
रिधि- सिधि संपदा अकूत बिछलाई है ।।


तड़क-भड़कयुत लहरीलो साँवरो है , 
तेरी चकाचौंध सारै जग को लुभावै है ।
ठग है तू महाचोर, गोपियाँ ठगाय लई, 
तथापि तू प्राणधन उनको कहावै है ।
चुरा ले तू पाप मेरे ,कहीं का न मुझे रख, 
जग तो है दोगलो,  न मुझे कछू भावै है ।
आपुनी सरण लेले, मुझको ऐ प्यारे ठग, 
तेरी ठगोरी ते मेरो मन न अघावै है ।।