नीले- नीले वसन में आप छविमान प्रभु,
आपकी महानता को मेरा परनाम है l
घर में ही बैठे-बैठे, गुनगान करूँ मैं तो,
आपकी ये छवि मेरे लिए चारधाम है l
बालपन युहीं बीत्यो,युवानी भी ठहरी ना,
अब तू सुधार मेरे जीवन की शाम है l
तू है दीन-प्रतिपाल, फँस्यो मैं जगत्-जाल,
मोही तू उबार अब काहे हुओ वाम है ??
गजानन को स्वरूप श्रीजी धरि सोह रहे ,
मौज चढ़ी आपको भी गजब दुहाई है।
करिवर- वदन है, सोभा के सदन आप,
सूंड को घुमाव मोह रह्यो सुखदाई है ।
केसरी है पाग,देखि उपजत अनुराग ,
तिलक की सोभा भव्य- भाल अधिकाई है ।
कलेवर स्याम अभिराम ओप रह्यो खूब,
रिधि- सिधि संपदा अकूत बिछलाई है ।।
तड़क-भड़कयुत लहरीलो साँवरो है ,
तेरी चकाचौंध सारै जग को लुभावै है ।
ठग है तू महाचोर, गोपियाँ ठगाय लई,
तथापि तू प्राणधन उनको कहावै है ।
चुरा ले तू पाप मेरे ,कहीं का न मुझे रख,
जग तो है दोगलो, न मुझे कछू भावै है ।
आपुनी सरण लेले, मुझको ऐ प्यारे ठग,
तेरी ठगोरी ते मेरो मन न अघावै है ।।