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लघुकथा: रनिया की तीसरी बेटी (मुनमुन ढाली, रांची, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मुनमुन ढाली की एक लघुकथा  जिसका शीर्षक है “रनिया की तीसरी बेटी":

आंगन में चुकु-मुकु हो कर बैठी ,रनिया सिर पर घूंघट डाले, गोद मे अपनी प्यारी सी बेटी को दूध पिलाती है और बीच-बीच मे घूंघट हटा कर ,अपने आस -पास देखती है और उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कान छलक जाती है।

रनिया की सास गुस्से में तमतमाई चूल्हे से गरम कोयला,चिमटे में दबाई बड़बड़ाती हुई रनिया की तरफ बढ़ी और गरम कोयला रनिया के पीठ पर झोंक दिया और करकश आवाज़ में बोली "झूठी ,कलमुई फिर बेटी जानी तुने "

सास,पास ही सर पकड़ के बैठ जाती है ,ज़ोर-ज़ोर से बोलती है ,

हे मारा राम जी ! कैसे उलट -फेर हो गया ,डाक्टरनी जी ने तो बेटा बोला था ।

डाक्टरनी कहे झूठ बोलेगी ,हमारी बहु ही चुड़ैल है।

सास को सर पिटता देख ,रनिया सोचने लगी और उसकी आंखें डब-डब भर गई,

यही हिम्मत पहले कर ली होती तो,मेरी दोनो बेटियाँ जिंदा तो होती,पहले कितनी मूरख थी मैं !

गोद मे नवजात को दूध पिलाती है और घूंघट की ओट में बिटिया से बोलती है  ,रनिया

लाडो, अगर मैंने उस दिन हिम्मत कर के डाक्टरनी को धमकी ना दी होती,तो तू आज ज़िन्दा न होती।

रनिया को याद आ गया वो दिन जब उसकी सास गर्भपरीक्षण के लिए clinic ले गयी और रनिया ने दबे स्वर मे डाक्टरनी से बोली ,

"मैंने मोबाइल मे आपकी और सास की बातें वीडियो कर ली है"

मैं जानू हूँ ,ई काम गैर- कानूनी है, मैं थारी रपट कोतवाली मे कर दूंगी डाक्टरनी जी।

उस दिन के बाद clinic बन्द हो गई और डाक्टरनी जी को किसी ने नही देखा।

रनिया का चेहरा ,धूल-मिट्टी से सना ,पर अलग ही चमक रहा था।