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कविता: जन्मस्थली (नूतन गर्ग, दिल्ली)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार नूतन गर्ग की एक कविता  जिसका शीर्षक है “जन्मस्थली”:
 
परी! मेरी प्यारी सखी,
जाती तू होगी रोज़ वहां,
जहां मैंने जन्म लिया,
बता! मुझे सब कैसे हैं वहां पर?
याद मुझे वहां की आती है बहुत।
 
काश! मेरे भी लगे होते पर,
जाती रोज़ मैं भी वहां पर,
खेलती घर के बड़े आंगन में,
खुले आसमान तले,
प्रदूषणमुक्त वातावरण में।
 
वो मेरे द्वारा ‌बोए हुए बीज,
अब तो बन ग‌ए होंगे पेड़,
मीठे फल भी तो लगते होंगे उन पर,
आशियाना चिड़ियों का भी तो,
बन गया होगा उन पेड़ों पर।
 
जहां मैंने जन्म लिया,
लौटकर फिर न जा पाई वहां,
जहां की संकरी गलियां,
पुकार रही हैं आज भी मुझे,
काश! पंख लगाकर उड़ जाऊं वहां।