पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी
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आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रंजना मिश्रा की एक कविता जिसका शीर्षक है “धरती”:
आओ इस बंजर धरती को फिर से हरा-भरा कर दें
देकर अपना श्रम कठोर फिर इसमें नवजीवन भर दें
दिखती नहीं जहां हरियाली धरती के इस सीने पर
कैसे कोई पुष्प खिलाए इस अनमोल नगीने पर
हाथों में ले हल कुदाल हम इसको उपजाऊ कर दें
देकर अपना श्रम कठोर फिर इसमें नवजीवन भर दें
यह तो धरती मां है अपनी जीवन सबको देती है
सब में अपना रस भर देती सब के दुख हर लेती है
क्यों इसको उजड़ा रहने दें फिर इसको रसमय कर दें
देकर अपना श्रम कठोर फिर इसमें नवजीवन भर दें
देख रही है धरती हमको आशा भरी निगाहों से
आओ मेरे लाल संवारो मुझको अपनी बाहों से
क्यों ना अपनी धरती मां की यह आशा पूरी कर दें
देकर अपना श्रम कठोर फिर इसने नव जीवन भर दें
जब यह बंजर धरती फिर से हरी-भरी हो जाएगी
देकर के फूल-फूल मधुर यह हमको सुखी बनाएगी
लेकर एक उत्साह नया फिर आओ थोड़ा श्रम कर लें
देकर अपना श्रम कठोर फिर इसमें नवजीवन भर दें
देकर अपना श्रम कठोर फिर इसमें नवजीवन भर दें
दिखती नहीं जहां हरियाली धरती के इस सीने पर
कैसे कोई पुष्प खिलाए इस अनमोल नगीने पर
हाथों में ले हल कुदाल हम इसको उपजाऊ कर दें
देकर अपना श्रम कठोर फिर इसमें नवजीवन भर दें
यह तो धरती मां है अपनी जीवन सबको देती है
सब में अपना रस भर देती सब के दुख हर लेती है
क्यों इसको उजड़ा रहने दें फिर इसको रसमय कर दें
देकर अपना श्रम कठोर फिर इसमें नवजीवन भर दें
देख रही है धरती हमको आशा भरी निगाहों से
आओ मेरे लाल संवारो मुझको अपनी बाहों से
क्यों ना अपनी धरती मां की यह आशा पूरी कर दें
देकर अपना श्रम कठोर फिर इसने नव जीवन भर दें
जब यह बंजर धरती फिर से हरी-भरी हो जाएगी
देकर के फूल-फूल मधुर यह हमको सुखी बनाएगी
लेकर एक उत्साह नया फिर आओ थोड़ा श्रम कर लें
देकर अपना श्रम कठोर फिर इसमें नवजीवन भर दें


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