पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार निशा गुप्ता की एक कविता जिसका
शीर्षक है “और क्या लिखूं मां के बारे में”:
और क्या लिखूं मां के बारे में,
वो तो तब भी समझ जाती,
जब हम बोल नहीं पाते थे!
मां बाते करती है किसी और से,
पर निगाहें रहतीं हैं मेरी ओर,
जब रहतीं हूं घर से बाहर,
मां दरवाज़े कों ही तकती हैं!
क्युकी वो तो तब भी समझ जाती,
जब हम बोल नहीं पाते थे!
जानें कैसे समझ जाती है,
मेरी मुक ख़ामोश बाते भी,
मेरी पसंद नापसंद को,
एक नज़र में समझ जाती हैं!
क्युकी वो तो तब भी समझ जाती,
जब हम बोल नहीं पाते थे!
जाने कैसी जादूगरी आती है,
उन्हें कुछ बताना भी नहीं पड़ता,
जो हर क्षण मेरा ख्याल रखती हैं,
मेरी हर चाहत पुरी करती हैं!
क्युकी वो तो तब भी समझ जाती,
जब हम बोल नही पाते थे!