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प्रार्थना (मोहनलाल सिंह, देवघर, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मोहनलाल सिंह की एक प्रार्थना:

दिव्य ज्योति के शक्ति पुंज तुम

है जग के आधार ।।

तुम्हीं से यह संसार निराले

तुम्हीं हो जग के करतार ।।

तुम्हीं से मेरे हृदय भावना

तुम्हीं कविता, गीत, गजल आधार ।।

हृदय के तारों में झंकृत

तुम मेरे कण-कण में अंकित ।।

तुम मेरे प्रीत प्रियतम  (ईश )हो

तुमसे मोहब्बत, प्यार ।।

है प्रियतम तुम जीवन आधार ।

तुम्हीं स्रष्टा ,हंता मेरे नाविक ।।

तुम मेरे पतवार, है पालनहार

कर दे बेडा पार ।

है करूणामय  ,दीनबंधु तुम ,

कर दे जीवन को साकार ।।

मैं मूढ ,अज्ञानी, अचेतन

कर दे चेतन का संचार ।।

है कृपानिधान! मैं हूं तेरी संतान ।

महिमा तेरी अपार! कर दे नौका पार ।।

कितनी खूबसूरत पर्वत देकर

औषधि से तू ब्याधि हर ।

निर्मल उज्जवल झरने का पानी,

झर झर के गीत सुनाते रब का ।।

मधुमय प्रीत का गान,

है प्रभु तुम हो कितने महान ।।

कल  कल, छल  छल बहती नदियाँ ।

मन कितने भा जाती नदियाँ ।।

है जीवन का आधार,

कर दे तु उद्धार ।

अनगिनत तारामंडल, अनगिनत सूरज, चाँद सितारे, कितने प्यारे ।।

न्यारा है संसार,

इतने सारे सुन्दर है तो तुम कितने सुन्दर होगे ।।

रूप दरश को करने *मोहन*

विनती करता बार बार ।

तू सबमें,सभी तुम्हीं से,

सब कुछ रूप तुम्हारे ।।

निराकार 'ऊँ कार तुम्हीं हो ।

है ब्रह्म! चराचर में तुम ही साकार ।।

जल, थल,नभ सब रूप तुम्हारे,

तेरी शक्ति अपार ।

अणु तुम्हीं से! तु ब्रह्मांड विस्तार ।।

दृश्य अदृश्य, जड चेतन के,

तुम ही तो आधार ।

मातु पिता, सखा सहोदर रक्षक भी तुम हो प्रभु आधार ।।

चिर शक्ति तू परम भक्ति तू

प्रेम रूप संसार ।

तेरे रज कण का कर चन्दन

मोहन करता नीत बन्दन ।।

है ईश है दयामय ! तू हो कृपानिधान ।

आर्तभाव से जो तुम्हें पुकारे

सदा रखते हो ध्यान ।।

भक्त की भक्ति शक्ति का

बन जाते तुम गुलाम ।

हे प्रभु तुम हो कितने महान ।।

नश्वर जग है तुम अविनाशी,

तुम तो हो घट घट के बासी ।।

अजर अमर आधार,

हे प्रभु तुम हो संसार ।

तू पूर्ण चैतन्य, हमें सचेत बनाओ ।।

राग ,द्वेष, दुःख दूर भगाओ

सतपथ के पथिक बनें हम ।

दे दो ऐसा सद्विचार ।।

हे दीनबंधु हे करूणामय तू ही जगत आधार ।

कर दे बेडा पार ।।

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