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कविता: अजल (डॉ• राजेन्द्र मिलन, मिलन मंजरी, आजादनगर, खंदारी, आगरा, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉराजेन्द्र मिलन की एक कविता  जिसका शीर्षक है “अजल”:

मानस मंथन तो किया बनी नहीं पर बात
धीरे-धीरे ढल गया यौवन का जलजात
 
परखे हमने हर तरह भांति-भांति के लोग
कुछ निकले पूरे घुटे अधिक रहे नवजात
 
आए थे हरि भजन को औटन लगे कपास
शत प्रतिशत सच ही कहा जग भर में विख्यात
 
जैसे को तैसा मिले जग की ऐसी चाल
मनसा वाचा कर्मणा जीवन की सौगात
 
धन दौलत की चाह या काम केलि का रोग
मन बन जाता बावरा  कर देता उत्पात
 
बडे़-बड़ों से हम मिले करके थके विमर्श
तृप्त नहीं मानस-क्षुधा उर करता आघात
 
शब्द ऋषि कहते 'मिलन' होनी का इतिहास
होनहार  बिरवान के   होत  चीकने पात

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