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कविता: आरक्षण, अब और नहीं (सरिता गोयल, मुरैना, मध्य प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सरिता गोयल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “आरक्षण, अब और नहीं”:
 
कलम समर्पित मां भारतीय को
     मै शब्दों के कुंठित प्रहार करूं
     लिखूं नहीं कोई  संवेदना 
     जिससे प्रशंशा की पात्र बनु
 
       कविवर ना कहना कोई मुझे
       मेरे शब्दों में कोई मधुमयी बात नहीं
      झूठ को   कर  दूं   मखमली
      ऐसी मै कलमकार नहीं
 
         आरक्षण ,अब और नही।।
 
          पाती  - पाती पर 
           जाति- जाति का खेला है
           निठलो की सरकार चलती है
           नेताओ की कुर्सी बचती है
 
          आरक्षण अब और नही।।
 
           आरक्षण के अधिकारों को
            सेना में क्यों नहीं लाते हो
            जाति - पाति की यह नीति
             सरहद पर क्यों नहीं आजमाते हो
 
           आरक्षण, अब और नहीं।।
 
            क्यों शत्रु की गोली को
            संविधान नहीं बतलाते हो
           भीम और बजरंग सेना से
          क्यों हिन्द चौकसी नहीं करवाते हो
 
           आरक्षण ,अब और नहीं।।
 
            मुरझाए फूलों पर क्यों?
            आरक्षण इत्र छिड़काते हो
            प्रतिभा का करके हनन
            अयोग्यता को सिरमौर बनाते हो
 
          आरक्षण ,अब और नहीं।।
 
           धर्म निरपेक्ष का पाठ
           संविधान ने सिखाया है
         अखंड भारत का संकल्प
         विखंडित सत्ता मोह ने करवाया है
 
          आरक्षण ,अब और नहीं।।
 
           मूढ़ को दे आरक्षण का मूल्य
           शोध पर अशोधता करवाई जाती है
          विवेक पर कसकर आरक्षण अंकुश
          अविकासता  देश में गहराई जाती है
 
         आरक्षण ,अब और नहीं ।।

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